ग़ज़ल
वो रात,
खामोश सी, थमी एक जवाब का इंतज़ार कर रही है,
वो रात शायद तुम्हारे इकरार का इंतज़ार कर रही है,
अरसा बीता है दीदार ए महबूबा हुए,
इक शख्स चराग भुजाए शाम्मा का इंतज़ार कर रही है.
वो शाम न जाने उस रात का इंतज़ार कर रही है
दोपहर के धुप से परेशान हवा का इंतज़ार कर रही है,
वो कब से फन्ना है मोहोब्बत में तुम्हारे,
धड़कन रोक बस तुम्हारे इज़हार का इंतज़ार कर रही है,
ये गजल भी तीरे इज़हार पर गौर कर रही है,
जवाब से, ख्याल बने इस बात इंतज़ार कर रही है.
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jaahil 12w