CSR Initiatives
ख़्वाब देखकर मुनाफा कमाना सिखाया था तुने
इस बेरोजगार को मेहनती बनाया था तुने
जिन कारखानों को मजदूरों का हक लेते देखा था न,,,,,,,
उन्हें भी जिंदगी का उम्मती बनाया था तुने।
फिर एक दिन ऐसा आया सब सूना हो गया
तेरे अक्श कि साजिशों में तेरा दिल दफ़न हो गया ।
तुझे बचाने कि कोशिशों में मेरे दिलो-दिमाग दोनों शामिल थे,
पर मैं तेरे दिल को न बचा पाया
तेरी शहादत को सलाम हैं मेरा
यकिन रख मैं तेरी उम्मीदों से ही अब जिंदा रहूंगा।
Corporate Sector Responsibility
Note- कारखाना=mind , मजदूर=emotions
©aaftab1995
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Stone Age!!
When life comes to a standstill
And nothing special will left to my will
Then I will give up!!!!
©aaftab1995 -
Inflationary Faces
अश्कों ने दरिया को अपना सबकुछ बेच दिया ,
इस उम्मीद के साथ कि जिंदगी कि मुस्कुराहट को वो खरीद सकें،،،،
पर कमबख्त जिंदगी जिन चेहरों कि गुलाम है
उनकी शाजिशो ने उसके सपने महंगें कर दिए।
اسکو نے ردییا کو اپنا ثبکوٗچہ بیچ رےےا
ایث اوُممیر کے ساتھ کی جینرگی کے موٗثکٗداہٹ کو و خدیر ثکے
پد کمبکہت جینرگی جین چےہدو کی غوٗلام ہ
اوٗنکی شاجیشو نے اوٗثکے ثپنے مہگ٘ے کد رییے.
©aaftab1995 -
World Health Organisation
नफ़रत के सौदागर सरहदों का ख्याल रखते हैं
उसके अंदर रह रहे लोगों का नहीं,
So,गुज़ारिश है आपसे दुरुस्त रखिए उस मन को
जो दुनिया बनाने और उसे देखने का हुनर रखती है।
©aaftab1995 -
Her Teachings
तेरी पढ़ाई में अब इस अनपढ़ का मन सा लग गया है,,,
क्या करें जिंदगी के सबक तुझसे अलहदा बता ही नही पाया
मुझे कोई आजतक।
बड़ी सिद्दत से झूठ,फरेब ,मतलब और मुस्कुराहट को एक साथ लिखना सिखाया तुने,
बस अब इसके आगे ज़िंदगी लिखने को तेरा साथ चाहिए।
©aaftab1995 -
मुसाफ़िर I am!!
And the best part of your motivation
is The involvement of emotions
Whose velocity makes me
The future of transportation in my city.
©aaftab1995 -
Sustainable Faith!!!
उन लफ़्ज़ों का तबादला कर दिया गया जो सवाल करते थे
और यकिन भारी मतों से सरहदें बनाता चला गया।
©aaftab1995 -
Sole Proprietor
बड़ी सिद्दत से अपने जज्बातों कि तिजारत कि है मैंने,
मुनाफा भी बहुत हुआ है,,,,,,,
पत्थरों कि मांग आजकल बढ़ गई है बाजारों में,,,,,,,
अब बस इन्हें बेचने को तुम्हारा साथ चाहिए।
©aaftab1995 -
Black Gold Economy
सुना है जिन निगाहों को उनके मुस्कुराहट की तलब रहती थी,,,२
वो आजकल बहुत सी उम्मीदों को सहारा दे रहे हैं,
अनपढ़ होकर भी ये ,,,,,,,,,,,२
पढ़ें लिखे जज़्बातों को अपना किनारा दे रहे हैं
मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां बेरोजगारी बहुत है,,,,,,२
शुक्रगुजार हूं मैं इनका ,, अब तो ये मेरे जीने का भी किराया दे रहे हैं।
©aaftab1995 -
Usual Isolation
मैंने अपने यकिन को परेशान होते देखा है,,,,,
सब्र के जवाबों से अनजान होते देखा है
वक्त से वाकिफ होने में काफ़ी वक्त लग गया
क्या तुम्हें मेरी गुमशुदगी का पता है????
©aaftab1995
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akshay21bawane 65w
मंजिल
बदले बदले है
कुछ ख्वाब मेरे
अब तनहा है ये दिन आैर राते
मिलती कहा खुशी हर दफा
मेरी राह कुछ उलझन सी है
मै ठहरा जरुर हु
तू शुक्र कर ये मंजिल
तूझे पाने का इरादा
मैने बदला कहा है
©akshay21bawane -
servant_of_words_csk 110w
@panchdoot @hindiwriters #mirakee @writerstolli #writerstolli #piaa_choudhary #urdu @kusumsharma @classii_marshmallow @bleed_in_ink @roothi_kalam
ضمیر
انسان تیری روح کی للکار ہے ضمیر
اچھائ کے سفینےکا پتوار ہے ضمیر
اہل قلم بھی قید میں ہیں حکم رانوں کے
کتنے سحافیوں کی قلم بھی ہے بک رہی
اور گن رہے ہیں چاندی وہ سرما یہ دارں کی
چنکے قفس میں ملک کی ہے روح دم گھٹ رہی
کیوں بڑہکے ن انکو ہے کبھی ٹوکتا ضمیر
اور چرم کی راہوں سے کبھی روکتا ضمیر
معصوم دلوں میں بھی کوی زہر ہے بھر تا
گذار کوی قوم کا بھی سودا ہے کرتا
جو اپنے وطن کے لیے ہیں جاں لٹا گئے
اٹکے بھی کفن کی ہے تجارتی کوی کرتا
ہیں جیب سے دہنوان یہ اود کدم سے فقیر
کیوں انکو نہیں ہے کبھی کچوٹتا ضمیر
بازار میں اسمت کا کہیں مول ہے لگتا
روٹی کے لئے ہے کوی معصوم بھی بکتا
ضالم کوی ہر پل یہاں مجبور کو ٹہگتا
اجلے لباس میں ہےسیاہ دل کوی رکھتا
انکا ضمیر مر چکا ہے وہ نہیں جگتا
ماں باپ کو خودغرض بنکے چھوٹتے ہیں جو
احباب کے نقاب میں دل توڑتے ہیں جو
مذہب کے نام پر ہیں کرتے قتلِ ,,عام جو
جنّت کے دکھا سبز باغ لوٹتے ہیں ججو
مردہ ضمیر ہیں وہ قابلِ رحم نہیں
غیرت نہین ہے ان میں نہ باقی شرم کہیں
انسان کی پہچان کرم ہے جنم نہیں
بڑھ کر تیرے ضمیر سے کوی دھرم نہیں
अहल-ए-क़लम - तालीमयाफ्ता(पढे़ लिखे लोग)
सहाफी - पत्रकार (scribe, journalist)
क़फ़स - पिंजड़ा, क़ैद
अस्मत - इज़्ज़त, आबरू
सरमाएदार - पूँजिपति (a magnate (capitalist))
अहबाब - मित्र
*may be alternated with ज़ुल्म also
@anita_sudhir @jazbaaatt_rlpanwar @naushadtmज़मीर
ज़मीर
इंसान तेरी रूह की ललकार है ज़मीर
अच्छाई के सफीने का पतवार है ज़मीर
अहल-ए-क़लम भी क़ैद में हैं हुक्मरानों की
कितने सहाफियों की क़लम भी है बिक रही...
और तौलते हैं चाँदी वो सरमायेदारों की
जिनके क़फ़स में मुल्क की है रूह घुट रही...
क्यों बढ़के न इनको है कभी टोकता ज़मीर
और *जुर्म की राहों में कभी रोकता ज़मीर
मासूम दिलों में भी कोई ज़हर है भरता
गद्दार कोई कौम का भी सौदा है करता...
जो अपने वतन के लिए हैं जाँ लुटा गए
उनके भी कफन की है तिजारत कोई करता...
हैं जेब से धनवान ये और कर्म से फकीर
क्यों इनको नहीं है कभी कचोटता ज़मीर
बाज़ार में अस्मत का कहीं मोल है लगता
रोटी के लिए है कोई मासूम भी बिकता...
ज़ालिम कोई हर पल यहाँ मजबूर को ठगता
संगदिल से खरीदारों को सब खेल है लगता...
उजले लिबास में है स्याह दिल कोई रखता
इनका ज़मीर मर चुका है वो नहीं जगता
माँ बाप को खुदगर्ज़ बनके छोड़ते हैं जो
अहबाब के नकाब में घर तोड़ते हैं जो...
मज़हब के नाम पर हैं करते कत्लेआम जो
जन्नत के दिखा सब्ज़बाग लूटते हैं जो...
मुर्दा ज़मीर हैं वो काबिल-ए-रहम नहीं
गैरत नहीं है उनमें बाकी, ना शरम कहीं
इंसान की पहचान करम है जनम नहीं
बढ़कर तेरे जमीर से कोई धरम नहीं
©servant_of_words_csk -
क्या खरिदने निकले हो ये तो बताओ यहाँ सब बिकता है
आदमी हो या रिश्ते यहाँ हर एक का दाम लगता है
इस दुनिया में हर कोई व्यपारी और हर कोई खरियार है
क्या खरिदने निकले हो ये तो बताओ यहाँ सब बिकता है
यहाँ हर कोई का दिल काला और चेहरे पर नकाब डाला है
ये दुनिया तो मेला है यहाँ हर एक चिज बिकने वाला है
क्या खरिदने निकले हो ये तो बताओ यहाँ सब बिकता है
प्यार, मोहब्बत, रुसवाई जुदाई दर्द बेवफाई सब है यहाँ
तुम्हे क्या चाहिए ये तुम पर निर्भर करता है
क्या खरिदने निकले हो ये तो बताओ यहाँ सब बिकता है
©pra_gati
