ग़ज़ल
ये महकें फ़िज़ाएँ नये साल में सब।
वतन को सजाएँ नये साल में सब।
परिंदों के मानिंद उड़ें,पाएँ मंज़िल
सदा चहचहाएँ नये साल में सब।
बुनें रिश्तों में प्यार के नर्म धागे
अदावत भुलाएँ नये साल में सब।
हसद और नफ़रत मिटा दें जहाँ से
बुराई हटाएँ नये साल में सब।
रहे अम्न कायम,न हो अब तनाज़ा
ख़ुशी गुनगुनाएँ नये साल में सब।
किये जो थे वादे किसी से भी तुमने
हमेशा निभाएँ नये साल में सब।
हुई भूल गर जो 'अनित्या' से अब तक
उसे भूल जाएँ नये साल में सब।
©anitasinghanitya
#anitasinghanitya
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anitasinghanitya 61w
#anitasinghanitya @d_shubh
मेरे मिराकी परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
शुभकामनाएं देने के लिये आप सबके बीच उपस्थित हूँ!
अपनों की याद तो आती ही है!! परंतु समयाभाव के कारण
स्थायी रूप से रह भी नहीं सकती।क्षमा कीजियेगा।
वज़्न
122 122 122 122 -
ग़ज़ल
मुहब्बत को यूँ अपनाया नहीं है!
अभी दिल बात को माना नहीं है!
फिरूँ मैं ठोकरों में दर बदर की
मेरी किस्मत में घर जाना नहीं है!
ज़िदों को छोड़ देती हूँ मैं अक्सर
तेरे दिल को यूँ तड़पाना नहीं है!
ठहर जाते हैं मेरे ये कदम भी
तू मेरे साथ जब चलता नहीं है!
गुमां है गर फ़लक को चाँद पर तो
कभी उसने तुम्हें देखा नहीं है!
न रूठा तुम करो हमसे कभी भी
ख़फ़ा होना तेरा भाता नहीं है!
सुनी हर नीम तरकश बात तेरी
'अनित्या' ने किया शिकवा नहीं है!
©anitasinghanitya -
ग़ज़ल
आंखों में गर नमी नहीं होती!
होठों पर तिश्नगी नहीं होती!
जो मैं तुझसे मिली नहीं होती!
चेहरे पे ये हँसी नहीं होती!
रात का होना भी ज़रूरी है!
ख़ुशनुमा चाँदनी नहीं होती!
हम अगर तुमसे मिल गए होते
हसरतें ये दबी नहीं होती!
ज़ीस्त में रहते अजनबी बनकर
बात तुमसे जो की नहीं होती!
इश्क तुम से अगर नहीं होता
तुम तलक मैं बढ़ी नहीं होती!
साथ तुम मेरे जो चले होते
फिर 'अनित्या' डरी नहीं होती!
©anitasinghanitya -
ग़ज़ल
वायदा मुझ से कर गया कोई!
पल में ही फिर मुकर गया कोई!
आज कर के असर गया कोई
दिल मेरा जीतकर गया कोई!
शख्सियत में बहुत असर तेरी
साथ रहकर निखर गया कोई!
थामकर रखना तुम ये दिल अपना
मुझसे ये बोलकर गया कोई!
जिंदगी में बिखर गई थी मैं
आज बाहों में भर गया कोई!
ज़लज़ला ज़िन्दगी में आया जब
तिनके जैसा बिखर गया कोई!
था'अनित्या' नहीं कभी तेरा
यूँ बचाकर नज़र गया कोई!
©anitasinghanitya -
धनतेरस
यह सोने की चमक,पैसे की खनक!
दोगुनी दिखती है दीपक की दमक!
कार्तिक मास का है तेरहवाँ दिवस!
तभी कहलाता है पर्व धनतेरस!
होता पूजन कुबेर औ धन्वंतरि का !
भय भी दूर होता,अकाल मृत्यु का !
धन और स्वास्थ्य का आह्वान होता!
शीत ऋतु का धीमा आगमन होता!
प्रफुल्लित मन से करें सब स्वागत!
सदैव हो स्वास्थ्य,धन धान्य आगत!
मन अंधकार मिटे समस्त जगत का!
अलंकृत आँचल हो निज धरा का!
जन जन का हो वैर भाव तिरोहित!
सब के घर व मन भी हो प्रकाशित!
हर घर में अवतरण हो खुशियों का
दीपक यही कहता है धनतेरस का!
©Anita Singh 'Anitya' -
anitasinghanitya 71w
#anitasinghanitya#NTM
केवल अभ्यास के लिये विभिन्न भावों को लिखती हूँ!रचना की दृष्टि से देखें!
वज़्न
122 122 122 122 #poetryग़ज़ल
अभी चश्म में मेरे पानी कहाँ है!
हुई ये मुकम्मल कहानी कहाँ है!
अगर हो गयी है मुहब्बत तुम्हीं से
किसी से भी फिर ये छुपानी कहाँ है!
फ़ना हो किसी की खातिर यहां पर
नज़र आए आखिर जवानी कहाँ है!
बिखरना लिखा है हरिक जीस्त में यूं
रहे सिमटी वो जिंदगानी कहां है!
समाए हुए हो मेरी रूह में तुम
जुदाई कभी फिर ये आनी कहाँ है!
हुई बेवफाई ये माना सनम पर
तेरे इश्क़ की भी निशानी कहाँ है!
लबों पर रखी बात कह दे 'अनित्या'
सभी से मगर ये बतानी कहाँ है!
©anitasinghanitya -
दीपक
दीपावली की रात का दिया!
जलाता ही रहा अपना जिया!
कुछ देर साथ, स्नेह बाती का!
फिर रहा साथ तिमिर साथी सा!
जिसको मिटाने का था निमित्त!
वही साथी बना, चला चिन्हित!
मैं विलग सा पड़ा था अकेला!
शलभ का भी अब नहीं था रेला!
मैं अहम में था बड़ा ही चूर!
काल के घात से अब मजबूर!
कहाँ स्थायी जग में है कोई!
मर्म बात अब हृदय सँजोई!
निस दिन कर्म का करें वंदन!
निस्पृह भाव का हृदय स्पंदन!
कर्त्तव्य मार्ग पर चलते जाना!
आत्मोसर्ग कर जलते जाना!
जो साथ जिसका जितना मिला!
हँसकर स्वीकारूँ न करूँ गिला!
जीवन में नैराश्य का कर दमन!
रहूँ दीपक उजास भरा मगन!
©Anita Singh'Anitya' -
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#anitasinghanitya#NTM
रचना की दृष्टि से देखें!
कॉमेंट्स न कर पाने के लिए माफ़ी दीजिएगा!
वज़्न- 122 122 122 122ग़ज़ल
क़मर संग तारों की बारात होगी!
वही तो मिलन की सनम रात होगी।
नज़र से मुहब्बत की बरसात होगी!
तेरी मेरी जब भी कोई बात होगी!
शिकायत करेंगी हमारी ये आँखें
सनम तुमसे जब भी मुलाकात होगी!
कहाँ था पता हमको पहले से यह सब
कि दिल को मेरे बस हवालात होगी!
नहीं आता है हमनवा चैन दिल को
तेरी इसमें कोई खुराफ़ात होगी!
हुई गुफ़्तगू गर न तुमसे अभी भी
समझ फिर हमेशा मुदारात होगी!
अगर बात ज़िद सी ठहर ही गई है
'अनित्या' की तुमसे मुसावात होगी!
©anitasinghanitya -
anitasinghanitya 72w
विधा-पिरामिड
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz
" वर्ण पिरामिड
1)
वर्ण पिरामिड एक ऐसी विधा है जिसकी
प्रथम पंक्ति में केवल एक वर्ण ,
दूसरी पंक्ति में दो वर्ण तीसरी में तीन
,इसी प्रकार क्रमश: बढ़ते हुए ,
सातवीं पंक्ति में सात वर्ण होते हैं,और
इन सात पंक्तियों में ही सम्पूर्ण काव्य होता है।
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2)आधे वर्ण की गिनती नहीं होती ।
3) किन्हीं दो पंक्तियों में तुकांत हो तो सोने पे सुहागा!
4)एक बिम्ब प्रस्तुत होना चाहिए!
ध्यान रहे वाक्य के टुकड़े नहीं करने हैं!शीर्षक-रश्मि
मैं
रश्मि
ज्ञान की
सदैव ही
दीप्त हो कर
तिमिर हरती
प्रकाश हूँ फैलाती
©anitasinghanitya -
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#poetry#bikhre_alfaz#anitasinghanitya
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स नहीं कर पा रही हूँ!
आती हूँ थोड़ी देर में आपकी पोस्ट पर!
तब तक#anitya से टैग कीजिये!साजन
तुम बिन मेरी ग़ज़ल,कविता हो जाती है सूनी!
सजन तुम पढ़ लो तो खुशी हो जाए ये दूनी!
हर एक हर्फ़ में लिखा हुआ है सिर्फ़ तुमको!
कहीं शिकायत तो कहीं प्रेम समर्पित तुमको!
छिपी हुई हैं इनमें सजन मेरी प्रेम की पाती!
तुम हो मेरे दीपक और मैं तुम्हारी ही बाती!
मेरी हँसी,मेरी मुस्कुराहट और मेरी ठिठोली!
तुम संग कितनी खट्टी मीठी यादें संजो ली!
काजल,बिंदिया लगा के पुलकित हूँ तुम संग!
मेरे ख़्वाबों में हक़ीक़त के भरते हो सब रंग!
सजना संवरना होता है तुमसे ही तो सजन!
रौनक तुम्हीं से,तुम्हीं से सजता है ये भवन!
©Anita Singh 'Anitya'
©anitasinghanitya -
anitasinghanitya 72w
#bikhre_alfaz#anitasinghanitya
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स नहीं कर पा रही हूँ!
आती हूँ थोड़ी देर में आपकी पोस्ट पर!
तब तक#anitya से टैग कीजिये! #poetryमूरत
मन मंदिर में सजाकर बैठी हूँ तेरी मूरत!
देखी न ,सुनी न,कहीं पाई तुझ सी सीरत!
जिस दिन से मुझे मिला है मेरा सांवरा!
उसके ही रंग में रंग गया मन मेरा बावरा!
जिस ओर नज़र घुमाऊं,तेरी ही छवि पाऊँ!
ह्रदय पटल पर लिखा जो नाम वही बताऊँ!
आराध्य हो मेरे और वंदनीय नंदकिशोर!
समझ गई काहे पुकारे जग चित चोर!
मन मोह कर सबका,बन गए हो मनमोहन!
राधिका के संग मीरा भी बन गई जोगन!
छवि अनोखी पाई, शोभा सबसे ही न्यारी!
तेरी मुस्कान पर साँवरे सारा जग ही हारी!
तुम साकार मुझमें हो,मूरत की क्या कहूँ!
बाहर पूजूँ, मन मंदिर में बसी छवि पूजूँ!
©Anita Singh 'Anitya'
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anitasinghanitya 72w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz
कविता पढ़ियेगा! उम्मीद है पसंद आएगी!
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स नहीं कर पा रही हूँ उसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ! #poetry
करवा चौथ
व्रत सुहागन का साल में आता एक बार!
सज्ज हो मुख निहारती भामा बार बार!
कितनी उमंगों से वह व्रत धारण करती!
निष्ठा,आशा, विश्वास हृदय में सहेजती!
सात फेरों के सात वचनों को स्मरण कर!
विवाह की नींव को प्रेम रस में पाग कर!
रीति-रिवाज़ों को धैर्य के साथ निभाकर!
निर्जला व्रत सम्पन्न करती वह हँसकर!
सोलह श्रृंगार से नख-शिख तक सजती!
मेहंदी की ख़ुशबू,चूड़ियों की खन-खन!
रूप देख सुहागन का चाँद भी सकुचाता!
ज़मीं के चाँद के समक्ष चाँद आसमां का !
चंद्र-पूजा के संग अपने सजन को निहार!
अर्ध्य दे शशि को,स्वयं को तप से निखार!
प्रत्येक पत्नी माँगे दीर्घायु पति की हर बार!
आत्म-संतुष्टि दमक को देखता यह संसार!
©Anita Singh 'Anitya'.
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anitasinghanitya 73w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz
आज एक ग़ज़ल!
अनुरोध है कि रचना की दृष्टि से पढ़ें! लेखिका विभिन्न भावों को व्यक्त करने में समर्थ है!
कॉमेंट्स न करने के लिये माफ़ी दीजिएगा!
वज़्न 221 2121 1221 212ग़ज़ल
खिलते थे गुल जहां कभी जश्ने बहार के!
अब रह गए हैं देख लो गुलशन वो खार के!
कैसे भरें ये ज़ख़्म हैं जो दिल में यार के
गहरे बहुत हैं घाव भी उसकी कटार के!
शब हिज़्र की बिताई जो हैं जाग जाग कर
अब तक मुझे हैं याद वो पल इंतज़ार के!
दीवार ही यकीन की गिरने लगी हो जब
कब तक चलेगी दोस्ती फिर बिन करार के!
खुद का पता न और न दुनिया से राब्ता
हम जी रहे हैं इश्क में यूं दिन गुज़ार के!
गर चल पड़े हो राह पे तो सोचना है क्या
आते सभी की जीस्त में पल जीत हार के!
जिसको 'अनित्या' ने यहां शाने पे दी जगह
दस्तार वो ही ले गया सर से उतार के!
©Anita Singh 'Anitya' -
anitasinghanitya 75w
#anitasinghanitya#NTM#bikhre_alfaz
वज़्न
212 212 212 212
रचना की दृष्टि से देखें केवल!
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स करने में असमर्थ हूँग़ज़ल
बातों बातों में ऐसा असर कर गया!
क्या कहूँ वो मेरे दिल में घर कर गया!
जिद का पक्का भी है मन का सच्चा भी है
पैदा यूं भी मेरे मन में डर कर गया!
वक्त बेवक्त ही याद आकर मुझे
कितनी बेचैनियां वो इधर कर गया!
रात सारी कटी गुफ्तगू में मेरी
बात बातों में शब को सहर कर गया!
बस गया खुद तो है वो दिलो जान में
मुझको मुझसे जुदा ही मगर कर गया!
चैन पड़ता नहीं जो न देखूँ उसे
जाने कैसी वो मेरी नजर कर गया!
एक जर्रा थी लिपटी हुई धूल में
मुझको छूकर मगर वो गुहर कर गया!
रूह मेरी 'अनित्या' है तुझ में बसी
कह के आसां वो यूं ये सफर कर गया!
©anitasinghanitya -
anitasinghanitya 75w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz#NTM
वज़्न
22 22 22 22 22 2
रचना की दृष्टि से देखें केवल!
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स नहीं कर पा रही हूँ!ग़ज़ल
इस दिल को गुलदान बना दे या मौला
या बेशक बियाबान बना दे या मौला!
खो जाऊं मैं जिसके मीठे सपनों में
उस दिल का मेहमान बना दे या मौला!
नहीं रखे नफरत अब कोई भी दिल मे
ऐसा हर इंसान बना दे या मौला!
कड़ी धूप में मैं उसकी परछाई हूँ
मुझको सायबान बना दे या मौला!
नहीं उदासी हो इक पल भी आंखों में
होठों की मुस्कान बना दे या मौला!
लिखी जहां की हों जिसमें सारी खुशियां
ऐसा भी दीवान बना दे या मौला!
बैठ सुकूँ से गाएँ पंछी मन के छंद
ऐसा इक बागान बना दे या मौला!
धोखे खाकर आज 'अनित्या" टूट चुकी
अब सब से अनजान बना दे या मौला!
©anitasinghanitya -
anitasinghanitya 75w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz#NTM
आप सबकी दुआओं का असर!
बहुत धन्यवाद मेरे मिराकी परिवार का जिसने मुझे प्रोत्साहित किया! ❤️❤️
और एक विशिष्ट धन्यवाद उनके लिये जिन्होंने मुझे समय समय पर गलतियाँ बताई और सिखाया!.
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anitasinghanitya 75w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz
वज़्न
212 212 212 212
कॉमेंट्स न कर पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँइश्क के बस भँवर में तेरे डूबकर
बदली है ये फ़िज़ा देखते देखते!
©anitasinghanitya -
lifeisawesome_rd 76w
ख्वाब
हर ख्वाब हकीकत होने की आरज़ू कहां रखता है,
कुछ ख्वाबों की खुबसूरती उनके ख्वाब होने में हि हैं।
वो ख्वाब जो तरंग बनकर धमनियों में दौड़े,
और रोम-२ सिहर उठें उसके गुजरने से।
वो ख्वाब जो एक अलग दुनिया बना देता है ख्यालों में,
मगर कभी सच हो जाने की चाह पैदा नहीं करता।
वो ख्वाब जो खुद के लिए "मैं" होने की परिभाषा होकर भी,
जमाने के लिए वजूद तक नहीं रखता।
वो सुबह की आलस भरी आंखों में अंगड़ाइयां लेने वाला ख्वाब भी,
ऐसा हि हैं, एक बार चुस्ती ने चुटकी काटी नहीं के याद में भी नहीं मिलता।
हर ख्वाब हकीकत होने की आरज़ू कहां रखता है,
कुछ ख्वाबों की खुबसूरती .. ... ....
©life_is_awesome_byritudhankhar -
anitasinghanitya 76w
#anitasinghanitya#bikhre_alfaz#NTM
व्यस्त होने के कारण कॉमेंट्स नही कर पाऊँगीदहलीज़
जीवन में कितनी सारी दहलीज़ हैं समाहित !
बचपन से बुढापे तक सब इन पर हैं आश्रित !
सिखाया भी यही गया हमें यही शुरूआत से
बचपन घर की दहलीज़ में हमेशा है सुरक्षित !
निरंतर दहलीज़ लाँघकर के हम आगे हैं बढ़ते !
अपने ही अंतर्मन के डर से हम यूँ हैं लड़ते !
दहलीज़ सदैव ही लेती हमारी परीक्षा समय पर
हर दहलीज़ को यूँ ही नहीं लाँघ लिया करते !
आगामी खतरे से किया था लक्ष्मण ने आगाह!
दहलीज़ न करना पार, चाहे विपत्ति हो अथाह!
अवमानना की सीता ने,दहलीज़ की जो पार
हुआ वियोग राम से और पीड़ा मिली अपार!
हर दहलीज़ ख़ामोश पर सभी को है बोलती !
मान मर्यादा तो कभी संबधों को भी है तौलती !
सोच समझकर करना हर दहलीज़ का उल्लंघन
सार है समझाती ,कुछ जीवन में रस घोलती !
©Anita Singh 'Anitya'
©anitasinghanitya -
lifeisawesome_rd 76w
The land of rains.
Different shades of green scattered over the canvas of earth,
With a new colour of flowers every week enhancing the scenic beauty throughout the month,
The horizon seems to stretch farther here,
Apparently those large mountains stands beyond the smaller hills taking their care.
The sky turning from blue to white, black, again blue,
As the boulders of cloud with wind beneath it flew.
Smell of rain is the scent in these wet lands,
Diverse flora and fauna is it's richness.
©life_is_awesome_byritudhankhar