Adjust kar lena 3
Tareef karta nahi juth batata nahi adjust kar lena ☝️
Rahul_Varsatiy_Parmar
Aka उर्फ निशार ser@ph
©rahul_varsatiy_parmar
#mirakeehindi
2906 posts-
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none_ever_thee 2d
#गुरु
#ग़ुरूर
#गुरुवाणी
#जीवनज्ञान
#hindinama
#hindiwriters
#lifelessons
#teachingswonder
#mirakeehindi
#mirakeeworld
#mirakee"ग़ुरूर"
जो कहता है, "मैं तेरा गुरु हूँ!"
तो ध्यान रहे, वह गुरु नहीं,
उनका ग़ुरूर बोल रहा है...
©none_ever_thee -
inoxorable 5d
प्रेम
प्रेम न प्रथम होता है ना अंतिम
प्रेम बस प्रेम होता है
©inoxorable -
Out of way
LIVE IKE PRIMITIVE, THINK LIKE CLASSY
Rahul_Varsatiy_Parmar
Aka
उर्फ निशार ser@ph
©rahul_varsatiy_parmar -
Sane- Insane
समझदार लोग हमेशा दुखी रहते है,,
मूर्ख लोग हमेशा सुखी रहते है!!!
Sane people always being unhappy,
Insane people always being happy....
Rahul_Parsatiy_Parmar
Aka
उर्फ निशार ser@ph
©rahul_varsatiy_parmar -
फ़िक्र
महफ़िल में!!!
जिक्र तेरा...
नहीं हुआ...
न जाने क्यों फिर...
फ़िक्र तेरी ही हुई ||
©माही
©blue_nib -
itsmegirl_ 2w
Instagram id - @itsmegirl___
#mirakee #mirakeehindi #itsmegirl #love #life #mirakeworld #poem #shayari #quote #वो जो एक - दूसरे के संग,
एक-दूसरे के शहर घूमने के
वादे किए थे हमने,
वो वादे महज़ वादे ही रह गए...
और हमने अपने शहर ही बदल लिए!!
©itsmegirl -
anshsisodia 2w
चुभता हूँ।
#चुभन #hindi #poetry #night #write #mirakee #mirakeehindi #urdu #mirakeeindia @mirakee @mirakeehindiwriters #indiaये भी गजब सिलसिला है मेरी ज़िंदगी का..
मैं पल-पल में लोगों को दुखता हूँ,
मिलते हैं तो संभालते हैं फूलों की तरह..
फिर न जाने क्यों बाद में काटों सा चुभता हूँ..।।
अंश सिसोदिया
©anshsisodia -
इन्सान कोई भी हो अपने अंज़ाम
तक पहुँचता है
परिंदा मीलों चलकर ही आशियाने
तक पहुँचता है
करा लो जितना कराना है आज
मेहनत खुद से
कल पर रहने वाला फ़क़त रास्तों (फ़क़त - सिर्फ़)
तक पहुँचता है
अगर आसां हुई तेरी मंज़िल तो
मज़ा क्या आएगा
मुसाफ़िर धूप में जलकर ही छांव
तक पहुँचता है
वफ़ा करना ही है तो एक बार
आज़मा ले खुद को
हुस्न का आशिक महज़ जिस्म
तक पहुँचता है
भरोसा ख़ुद पर रखोगे तो जीत
तुम्हारी होगी
दूसरों के सहारे तो मुर्दा शमशान
तक पहुँचता है
मौत का वक़्त आ जाए तो
फिर कोई नहीं रूकता
शिकार ख़ुद से चलकर ही
शिकारी तक पहुँचता है
- आशीष प्रताप
©ashishpratap -
none_ever_thee 2w
#तबियत
#कुछ_यूँ_ही_कभी
#अनकहे_लफ़्ज़
#हसरतें
#mirakreeworld
#mirakeenetwork
#mirakeehindi
#नज़्म
#hindinama
#hindiwritersतबियत...
कुछ तस्वीरें गुमसुम बैठी हैं दीवारों पर,
घूल जम गई है रिश्तों की मिनारों पर!
सोचता हूंँ, लौट चलूंँ अब बस्ता उठाकर,
उन गलियों में, गाँव के ठिकानों पर!
पाँव थक कर, रक्त में सने हैं बरसो से,
हथेलियों की नसे फटे नज़र आते हैं।
कैसी विरासत है ये दरख्तों की,
अब मूर्गे भी टिक-टिक करते बरौंदे में!
फूलों का गुलदस्ता कई आते हैं,
खुशबुएं कभी उनसे आती नहीं मग़र!
बहुत चहल-पहल हैं रस्ते पर,
हर शख़्स ख़ुद से अनजान है मग़र...
हवा चली है पश्चिम से, या पूरब की उल्टी दिशा है?
मुँह छिपाता हर रौशनदानों से!
सत्ता की कुर्सी से गिर गया है जिस्म,
सुकूं से लेटा है वह, दो ग़ज ज़मीं में!
हसरतों को कांधा देकर आया हूँ मैं,
ख़्वाबों को भी रौंद आया हूँ मैं,
यूँ तो तबियत मौसम सा है मग़र...
मयकदे से तन्हा लौट आया हूँ मैं!
©none_ever_thee -
rahul_varsatiy_parmar 3w
माह-ए- मोहब्बत जरुर है,
पर शहीद जो हुये उनका मुझ पर अभी तक
फितूर है....!
_REBEL क्रांतिकारी PARMAR_
©rahul_varsatiy_parmar
#Rahulvarsatiyparmar #shaheed #february #mohhabt #fitoor #mirakeenetwork #mirakeehindiमाह-ए- फरवरी
माह-ए- मोहब्बत जरुर है,
पर शहीद जो हुये उनका मुझ पर अभी तक
फितूर है....!
_REBEL क्रांतिकारी PARMAR_
©rahul_varsatiy_parmar -
rittujoshi 3w
#खुदगर्ज़_मैं
जब से चालीस के पार हुई हूँ
थोड़ी सी खुदगर्ज़ हो गयी हूँ
अब अपना सारा समय
अपनों पर नहीं लुटाती
उसमें से कुछ पल खुद के लिए भी चुराती हूँ
सुनती हूँ रसोई में काम करते हुए
Earphones लगा ,
कोई मनपसंद संगीत, पुरानी कोई गज़ल या गीत
बिस्तर पर जाने से पहले
हाथ में लेती हूँ कुछ देर पढ़ने के लिए
वो किताब जो न जाने कब से
पढ़ने की इच्छा थी
पर घर के काम काज में उलझी
कभी पढ़ न सकी
शाम ढले चली जाती हूँ कभी
अपने काॅफी कप के साथ छत पर
घूंट घूंट पीती हूँ
डूबते सूरज की सौंदर्य
काॅफी के साथ साथ
या किसी पुराने मित्र के घर जाकर
चाय के साथ गपशप कर आती हूँ
जब से चालीस के पार हुई हूँ
थोड़ी सी खुदगर्ज़ हो गयी हूँ
अब मेरी रसोई में नहीं बनता
केवल बाकी लोगों की फ़रमाइश पर खाना ,
किसी किसी दिन
जो मुझे खाने का मन हो वो भी
पकाती हूं
थोड़ा खयाल अब खुद की इच्छाओं का भी रखती हूँ
देखती हूँ दोपहर के खाली समय में
सब्जी काटते हुए ,
बरसों से बनी पड़ी watchlist में से
कोई पसंदीदा फिल्म
मितव्ययी थी जो मैं,
अब फीजूलखरची कर लेती हूँ कभी-कभी
कर लेती हूँ online order
बस मन करने पर
कोई ग़ैरजरूरी चीज़ भी
जब से चालीस के पार हुई हूँ
थोड़ी सी खुदगर्ज़ हो गयी हूँ
सब कहते हैं
मैं अब पहले सी नहीं रही
बहुत बदल गयी हूँ
मैं सोचती हूँ
वक्त रहते संभल गयी हूँ
वरना शायद,
मनचीता सब करने से रह जाता
और वक्त रेत सा मुट्ठी से
फिसल जाता ...
और हथेलियों पर अफसोस के सिवा कुछ न बच पाता...
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©rittujoshi -
तोड़ के सारी बंदिशें, उड़ जा तू आसमाँ चीर के
देखना क्या जमीं को, जब ऊँची हैं तेरी मंज़िले
तू रख हौसला, तेरे हौसले से मौसम भी बदलेगा
क्या डरना बादलों की गरज से,जब तुझे भी जीत का शोर पसंद है
©ashishpratap -
rittujoshi 6w
दो बूढ़ी आंखें
दो बूढ़ी आंखें देखा करती हैं
खामोशी से
एक बदलता हुआ दौर
अपने चश्मे के पार
सोचा करती हैं अक्सर
क्या जमाना आ गया है
कि रिश्तों की जगह भर दी है
हाथ भर के मोबाइल ने
एक छत के नीचे रह कर भी
किस तरह बंटा हुआ है
अलग अलग कोनों में
उनका चार सदस्यों का परिवार
वे कई बार चली जाती हैं
बीती हुई गलियों में
सोचने लगती हैं
सब सिलसिलेवार
क्या जमाना था वो भी
जब उनके पति दफ़्तर से लौटते हुए
खरीद लाते थे दो रूपये का गजरा
और प्यार से खोंस दिया करते थे
उनके बालों में
कितनी खुशियाँ समेटे थे
वो छोटे छोटे पल
गरीबी के उन दिनों में भी
वे ले ही जाते थे
एक आध बार उन्हें साईकिल पर आगे बैठा कर
दिखाने सिनेमा
क्या दिन थे वो भी
जब वे साथ बैठते थे,बतियाते थे
और एक दूसरे की आँखों में आँखे ड़ाल कर
सब दुख दर्द भूल जाते थे
आज उनकी बहू घूमती है
उनके बेटे के बगल में बैठ कर
एक महंगी कार में
पर उन दोनों के
रूखे, फीके ,नीरस और उदासीन से रिश्ते में
वो खुशबू कहाँ जो उनके दो रूपये के मोगरे के गजरे में हुआ करती थी
घर में तीन बेटियों और एक बेटे समेत
चार बच्चे थे उनके
जिनके झगड़े सुलझाते सुलझाते
उनका पूरा दिन बीत जाता था
खिलौनों के नाम पर था ही क्या उनके बच्चों के पास
गेंद, कंचे, सतोल और गुलेल के सिवा
फिर भी खुश थे
आज उनकी पोती के पास
Laptop, DSLR,synthesizer,playstation और guitar और भी न जाने क्या क्या है महंगे मोबाइल के अलावा
पर कितना ऊब जाती है वो इन सब के बीच
अपने कमरे में
अकेले वक्त बिताते बिताते
कितनी चिड़चिड़ी और तुनक मिजाज हो चली है
अकेलेपन से लड़ते लड़ते
दो बूढ़ी आंखें देखा करती हैं
खामोशी से
सब कुछ होते हुए भी
तैरता हुआ बेटे, बहू और पोती की आँखों में
खालीपन और उदासी
वो छोड़ती हैं एक गहरी साँस
कि वो महसूस तो करती हैं अपने परिवार की व्यथा
पर कर कुछ नहीं सकती उम्र के इस पड़ाव पर
उनके दुखों के बारे में
©rittujoshi -
चंगेज़ खान ने धर्म परिवर्तित किया
ईशा ने अपना देह समर्पित किया
क्रूर शासकों ने जब ताकत दिखाई
तब इतिहास को भी शर्म आयी
ऐसी मानसिकता ने हमेशा हिंसा को दिया जन्म है
लेकिन अमरत्व का ज्ञान लिये-
सदा जीवित हिन्दू धर्म है,
कोई एक की पूजा करता है
तो कोई एक ओंकार की
किसी के अंदर डर छुपा है
तो किसी में श्रद्धा प्यार की
जहाँ राधा के कृष्ण को पाने के लिए मीरा ने किया कठोर कर्म है
अपने अपने इष्ट का ध्यान किये-
सदा जीवित हिन्दू धर्म है,
यहाँ जल में भी देवता विराजमान हैं
हमारे लिए तो अग्नि भी पवित्र है,
यहाँ पेड़ पौधे भी पूजित हैं
हमारे लिए जानवर भी मित्र हैं,
ये साक्ष नहीं, ये हमारी शिक्षा है
जहाँ एक राहगीर ने शिव को दी भिक्षा है
इस प्राचीन शैली से अवगत कराने में ही इस कविता का मर्म है
सदाचार का मान लिये-
सदा जीवित हिन्दू धर्म है..
©vitthalshukla -
मर्यादा और बंधन
जब एक स्त्री किसी पुरूष के प्रेम में होती है,
तो वो अपनी मर्यादा और बंधनो से ख़ुदको मुक्त कर लेती है।
और जब एक पुरूष किसी स्त्री के प्रेम में होता है,
तो वो उस स्त्री को अपनी मर्यादा और बंधन बना लेता है।
©kaach_ka_panchi -
ankur_kanaujia 6w
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❤
कितने प्यारे कितने अच्छे होंगे,,
जो लोग तुम्हें चाहते होंगे।
कितना नखरा कितना गुस्सा सहते होंगे,,
जो लोग तुम्हें भाते होंगे।
वो लोग भी कितने सच्चे होंगे,,
जो फिर भी तुम पर मरते हैं होंगे।।
©skchauhan -
कैसे कह दूँ कि कोई मुझे समझता नही हैं,
कैसे ही कह दूँ कि कोई मुझे समझता नही है ,
कम्बख़्त ख़ता मेरी है
मुझे ही कभी समझाना नही आया !!!
©naincy_yashika_nainooo -
none_ever_thee 8w
#मरहम
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#फरेब
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#mirakeeshayari
#lifelesson"मरहम"
सोचा था, ज़ख़्मों के मेरे, लाए वो मरहम हैं,
मरहम नहीं ज़हर था घुला दवाओं में,
ज़ख़्म हुआ और भी गहरा, ज़फ़ा थी हवाओं में,
अब न दुआ करे असर, न दवा काम आए,
हुई शाम सहर में,मरहम ने छोड़ा नहीं क़सर,
नफ़्ज़ थी धीमी, सांस थामे चल रही थी डग़र,
कि, फ़िर आया कोई क़रीब, मरहम देख हाथों में, "मर हम" गए...
©none_ever_thee