है मुहब्बत कहीं है जिगर हादसा।
है ज़रूरी दिलों को मगर हादसा।।
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ख़ामियों से कहाँ कोई सीखे मियाँ।
ख़ामियों से तो है बेहतर हादसा।।
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सिर्फ़ सपनों ही का सच है वो इक शहर।
है हक़ीक़त में वो इक शहर हादसा।।
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ज़ख़्म गहरे दे जाता है अक्सर मियाँ।
फिर ज़ियादा हो या मुख़्तसर हादसा।।
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©prakhar_sony
#my_burnt_diary
655 posts-
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prakhar_sony 5w
(23.01.21)
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आज़ार - रोग
ख़ार - काँटे
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5है हक़ीक़त इस तरफ़ उस पार ख़्वाहिश।
नफ़रतों के दरमियाँ हैं प्यार ख़्वाहिश।।
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कुछ बनाते हैं याँ मरहम ख़्वाहिशों के।
बन गए कुछ लोगों के आज़ार ख़्वाहिश।।
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हमने समझा फूल जिसको उम्र भर तक।
एक दिन आया समझ हैं ख़ार ख़्वाहिश।।
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©prakhar_sony -
शेर
वो जिस पे हँस पड़े थे लोग महफ़िल में।
उसी इक शेर में मेरा ज़माना था।।
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©prakhar_sony -
चाँद सूरज यहाँ दिखते चलते हुए।
है मगर आसमाँ देख ठहरे हुए।।
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कोई बेचे या कोई ख़रीदे दिए।
लौ सभी के दिखे घर में जलते हुए।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 16w
(06.11.2020)
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एक मतला और चंद शेर पेश-ए-ख़िदमत हैं । आप सभी की समाअत चाहता हूँ । मुलाहिज़ा फरमाएं
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गर - अगर
पिन्हाँ - छिपा हुआ
साया - परछाई
हुजरा - झोपड़ी
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5और फिर क्या इस से ज़्यादा बेहतर था।
सबकी आँखो पर इक पर्दा बेहतर था।।
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हैं ख़फा सब लोग ज़ाहिर होने पे गर।
फिर तो जैसे सच ये पिन्हाँ बेहतर था।।
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बोलने अपने लगे इक दिन यहाँ पर।
साथ चुप मेरे वो साया बेहतर था।।
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रौशनी सूरज की , तारों की न छत है।
घर से मेरा एक हुजरा बेहतर था।।
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शुक्र है ज़िन्दा निकल आए है यारों।
उनका दिल पे इक निशाना बेहतर था।।
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©prakhar_sony -
इक मिले हैं ज़ख़्म सारे ख़ूबसूरत।
और फिर उसपे इशारे ख़ूबसूरत।।
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है किसी को वास्ता गहराई से कब।
चाहिए सबको किनारे ख़ूबसूरत।।
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है लगी नज़रें सभी की चाँद पे बस।
लगते हैं हमको सितारे ख़ूबसूरत।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 16w
(04.11.2020)
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एक मतला और कुछ शेर पेश-ए-ख़िदमत हैं
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याँ - यहाँ
फ़क़त - सिर्फ़
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise05यहाँ कुछ बाद कुछ पहले मुसाफ़िर हैं।
मगर सब कोई मंज़िल के मुसाफ़िर हैं।।
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समंदर है किसी का दरिया है राही।
किसी के सिर्फ़ याँ कतरे मुसाफ़िर हैं।।
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सुनाते हैं फ़क़त गम रौशनी वाले।
दिखे ख़ुश जिनके अंधेरे मुसाफ़िर हैं।।
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किसी के चुभ रहे हैं शीशे राहों में।
किसी के लिए आईने मुसाफ़िर हैं।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 17w
(31.10.2020)
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तासीर - प्रभाव
हर-सू - सब तरफ़
पीर - धर्मगुरू/बुज़ुर्ग
याँ - यहाँ
सिपर - ढाल
शमशीर - तलवार
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5रखे बाज़ार में हैं तीर काग़ज़ के।
है कितने गहरे सब तासीर काग़ज़ के।।
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दगा छल झूठ धोखा सब दिए हैं फिर।
लगाए घर में हर-सू पीर काग़ज़ के।।
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है हाथो में यहाँ सबके सिपर फिर भी।
गले याँ काटते शमशीर काग़ज़ के।।
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दिखेंगी टूटती जंज़ीरे लोहे की।
मगर मजबूत है जंज़ीर काग़ज़ के।।
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बिताए संग लम्हे मिट गए दिल से।
न मिट पाए वो सब तस्वीर काग़ज़ के।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 19w
(16.10.2020)
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नइ - नई
ज़ौ-फ़िशानी - चमक
वर्क - कागज़
उल्फत - मोहब्बत
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5ग़ज़ल
कहता नइ कोई , कोई पुरानी ग़ज़ल।
अपनी-अपनी है सबकी कहानी ग़ज़ल।।
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दिख रहा बढ़ता अंधेरा अब हर तरफ़।
और अंधेरे में ज़ौ-फ़िशानी ग़ज़ल।।
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कोइ डूबा है बस इसमें दरिया समझ।
है किसी के लिए बहता पानी ग़ज़ल।।
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है कहीं दफ़्न वर्कों में ग़ज़लें फ़क़त।
बन गई है कहीं मुँह-ज़बानी ग़ज़ल।।
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है दवा और मरहम किसी के लिए।
और उल्फत की भी है निशानी ग़ज़ल।।
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©prakhar_sony -
हम न बदले और ना हालात बदले।
दरमियाँ आँखों के ना दिन-रात बदले।।
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हैं वही किस्से कहानी और मसले।
एक अरसे में फ़क़त सफ़्हात बदले।।
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एक मुश्किल मोड़ पर है फिर ये दास्ताँ।
किस तरह इसकी प्रखर शुरुआत बदले।।
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©prakhar_sony -
पेड़
कट गए पेड़ साया भी छटता गया।
और हिस्सा ज़मीनों का बँटता गया।।
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बीता बचपन जवानी बुढ़ापा जहाँ।
बस वहाँ आज रास्ता गुज़रता गया।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 24w
(14.09.2020)
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गुमगश्ता - खोता हुआ
तिमिर - रात/अँधेरा
इमरोज़ - आज
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5उजाला जैसे गुमगश्ता नज़र आया।
तिमिर के दरमियाँ रस्ता नज़र आया।।
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उसे था नाज़ मेरे लहज़े पे फिर क्यों।
मिरे लहज़े पे वो हँसता नज़र आया।।
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सलीके से कहा करता था बातें वो।
मगर इमरोज़ वो फँसता नज़र आया।।
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बड़ी रफ़्तार से सब फ़ैसले होते।
मगर महबूब आहिस्ता नज़र आया।।
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©prakhar_sony -
ढूंढूँ तुझे किस ओर ख़ुदा हर ज़गह तू रहता है।
फूल बनके खिलता है कहीं,कहीं पानी बनके बहता है।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 28w
(16.08.2020)
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कोइ - कोई
मुसलसल - लगातार
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5रुक मुझमे जाओ कोइ हलचल तुम नहीं।
कोई धुआँ या कोइ बादल तुम नहीं।।
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करते रहे बातें यूँ तुमसे नींद में।
जब जब खुली आँखें मुसलसल तुम नहीं।।
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वो इश्क ही क्या जिसमे पागलपन नहीं।
पागल हुए हम और पागल तुम नहीं।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 28w
(12.08.2020)
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शज़र - पेड़
दरिया - नदी
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5है ज़िन्दगी कोई यहाँ से बेहतर।
क्या कौन कैसे कब कहाँ से बेहतर।।
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हो वादियाँ झरने शज़र दरिया जहाँ।
कुछ चाँद तारे आसमाँ से बेहतर।।
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©prakhar_sony -
prakhar_sony 28w
(11.08.2020)
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मुसलसल -लगातार
स्याह - काली
सहर - सुबह
गोया - जैसे
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5मुसलसल स्याह रातों की सहर मुश्किल।
कभी आसां कभी लगता सफ़र मुश्किल।।
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कभी लगता मुनाफ़िक सब मिरे गोया।
कभी लगता यहाँ है दर-ब-दर मुश्किल।।
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©prakhar_sony -
ellie_b 30w
Whatever i felt, i wrote it down,
Nobody knew, but my diary confined,
Unable to abridge myself from you,
I burnt my diary to burn the bridges that led to you,
With every page i set ablaze,
my every unsaid emotion,
every hushed scream,
every wiped tear disappeared in the infinite sky,
Set my soul free to fly high..
#my_burnt_diary. #poetry #write_to_express
@mirakeenetwork. @mirakeeMy burnt diary
©ellie_b -
prakhar_sony 31w
(27.07.2020)
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बज़्म - महफिल
फ़क़त - सिर्फ
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##my_burnt_diary @writer_in_disguise5किस तरफ़ यार सारे फ़साने गए।
आ गए दिन नए अब पुराने गए।।
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जीत सकते थे सारे दिलों को मगर।
बज़्म में यार दिल हम गँवाने गए।।
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लोग सुनते ख़ुशी की कहानी नहीं।
हम फ़क़त दर्द अपना सुनाने गए।।
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©prakhar_sony -
किसी से शख़्स वो हारा नहीं लगता।
सही अंदाज़ तुम्हारा नहीं लगता।।
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चलानी है मुहिम हर-सू मुहब्बत की।
हमें कुछ और तो प्यारा नहीं लगता।।
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©prakhar_sony -
किन वाकयों में यार शामिल दौर है।
हैं हम घरों में क़ैद मुश्किल दौर है।।
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लगता सही सब कुछ मगर सब झूठ है।
बस ये हक़ीक़त है कि बिस्मिल दौर है।।
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©prakhar_sony