पन्नों में दबी तेरी तस्वीर हर बीते लम्हें को याद दिला देती है,
तुझसे जुड़े हर सपने को फिर से सजा देती है,
तेरा आना, जानता हूँ; अब मुमकिन नहीं,
ये तो तेरी तस्वीरें हैं,जो उम्मीदें जगा देती हैं॥
-निधि सहगल
©feelingsbywords
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feelingsbywords 16h
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कमज़ोर होते है रूढ़ियों के दरीचे,
जब ज़ज़्बे उड़ानों के मजबूत होते हैं।
ढकोसलों के सरिया पैरों तले दबाकर
तरक्की के निशान सबूत होते हैं।
-निधि सहगल
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महक उठा गुलशन , रात ने ली अंगड़ाई
अम्बुद की चुनर से छिटक, कौमुदी शरमाई।
पाकर गालों पर ओस का शीतल बोसा
पंखुरी मचल गई, फ़िज़ा में रंगत छाई।
जुगनू की बारात जगमगा शब को सजाए
झींगुर ने भी अपनी मधुर बांसुरी बजाई।
देख प्रकृति का अनुपम यह दृश्य निराला
पुलकित युगल ने प्रेममयी रागिनी सुनाई।
महक उठा गुलशन , रात ने ली अंगड़ाई
अम्बुद की चुनर से छिटक, कौमुदी शरमाई।
-निधि सहगल
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तुम कुम्हार , मैं माटी प्रभु जी,
रची तुमने मेरी काठी प्रभु जी।
मन का एक दीपक भी बनाया,
गुणों के तेल से उसे जगाया,
संग दी ज्ञान की बाती प्रभु जी,
तुम कुम्हार , मैं माटी प्रभु जी।
जग के मोह बाजार में आकर,
माया ठगिनी का संग पाकर,
फैली अज्ञान की राती प्रभु जी,
तुम कुम्हार , मैं माटी प्रभु जी।
हाथ पकड़कर फिर राह दिखाई,
बुझी ज्योति भक्ति रस से जगाई,
तेरे ही गुण अब गाती प्रभु जी,
तुम कुम्हार , मैं माटी प्रभु जी।
तन है माटी की इक ढेरी,
जग में न कुछ तेरी मेरी,
तेरे सिमरन की पढ़ ली पाती प्रभु जी,
तुम कुम्हार , मैं माटी प्रभु जी।
-निधि सहगल
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सरसी छंद
कितने सावन भीगे नैना, मन कराहती आस
प्रेम अगन की उठती ज्वाला, पिया नहीं है पास
एक झलक जो पाऊँ पिय की, मिट जाए सब पीर
हृदय हिलोर मौन हो जाए, तड़प बहाए नीर।
-निधि सहगल विदिता
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यादें
एक गुल्लक जो कभी फूटी ही नहीं,
उसमें भरी प्रेम और गुंजाइशों की उम्मीद कभी टूटी ही नहीं,
भरता रहा खज़ाना सुख दुख की ढेरी का,
कुछ अनकही, कुछ क्यों कही और कुछ न कहने की देरी का।
मन की अलमारी के कोने में रखी वो गुल्लक आज भी वैसी ही है,
नाम जिसका यादें है और कीमत उसकी अमूल्य जैसी है।
-निधि सहगल
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राख हो गई यादें जो थी मन के कोने में समाईं,
दफ़्न हो गईं ख्वाहिशें जो थी अरमानों ने जगाईं,
वक़्त की कंटीली रेत ने जख़्मी किये ख़्वाब के जिस्म,
लहू उनका सूख गया बनकर कोई पुरानी नज़्म,
न जाने क्यों फिर दिखती है एक धुंधली मूरत ठहरी,
जाती नहीं आँखों से सूरत तेरी।
-निधि सहगल
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मुक्तक
छुड़ाकर हाथ यूँ अपना, वफ़ा कैसी निभाते हो,
कलम की दस्तख़त से तुम, सज़ा मुझ को सुनाते हो,
नहीं अनुबंध था गहरा, न थी दिल मे मुहब्बत जब,
बनाकर खेल रिश्ते को, खिलौना दिल बनाते हो।
-निधि सहगल विदिता
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संग तुम्हारे
वक़्त कभी गुज़रा ही नहीं,
ठहरा रहा, संग तुम्हारे।
कहते हैं, ठहरी चीजें गंध छोड़ जाती हैं,
पर हमारे ठहरे वक़्त में कुछ खट्टी मीठी क्यारियाँ है,
और एक मजबूत वृक्ष धैर्य का,
जिसकी शाखाओं पर प्रेम की लहलहाती,
कभी न सूखने वाली हरी भरी पत्तियाँ है
और समर्पण के मीठे फल भी।
संग तुम्हारे, मेरे पास खुशबू भरी यादें इक्कठी हो रही हैं,
जिनसे मैं रोज़ उस वृक्ष के जड़ो को पोषित करती हूँ,
संग तुम्हारे, मैं हूँ, हम हैं और हमारा ठहरा वक़्त।
-निधि सहगल
©feelingsbywords -
मोह और प्रेम,
एक झीनी सी परत का अंतर ही तो है,
पर दोनों में एक समुद्र के दो किनारों सी दूरी।
तुम और मैं, ऐसे ही तो थे।
तुम्हारा मोह मेरी उंगलियाँ छोड़ने से डरता था,
मेरा प्रेम तुम्हारी उंगलियों में साँसे ढूंढता था,
फिर एक दिन प्रेम जीत गया,
और मोह ने कहा,
काश, तुम रुक जाते!!
प्रेम ने पलट कर नहीं देखा,
रुकने के लिए प्रेम को प्रेम चाहिए था।
-निधि सहगल
©feelingsbywords
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hindiwriters 6h
@7saptarangi_lekhan जी की कलम से निकली इस रचना को सराहें और इन्हें follow कर, इनका मनोबल बढ़ाएँ । पूरी ग़ज़ल इनके Mirakee profile पर ज़रूर पढ़ें ।
तीरगी - अंधेरा
बज़्म - सभा/महफ़िल
बहुत अच्छा लिखा है । ऐसे ही लिखते रहिये।
आपका लेख भी बन सकता है Hindi Post of the Day, बस दिल की बातें यूँ ही शब्दों में दर्शाते रहिये ।
#hindiwriters #hindipostHindi Post of the Day
लगा कोई जैसे अभी खुशबू उड़ाकर गया है,
मैं सो रहा हूँ कब्र में, फूल सजाकर गया है
ये कैसी तीरगी हो गई है भरी बज़्म में यारों,
एक परवाना सभी शमाएँ बुझाकर गया है
- सप्तरंग -
rangkarmi_anuj 17h
रेत की फिसलन
रेत की फिसलन
की तरह फिसलपट्टी
नहीं बनती है,
यह ज़िंदगी खुरदरी है
यह आसानी से मुलायम
नहीं बनती है।
पानी जब पड़ता है
मज़बूती जकड़ लेती है,
सांसों की आज़ादी के
लिए हवा बहकने लगती है।
कुछ ना सही ज़िंदगी
को आराम दे सकते हो,
इसलिए हर मंज़िल भी
रुकावट सी लगती है।
चार दिन चार रातें
यह भी बीत जाएंगे
रेत घड़ी की तरह
नीचे खिसकते चले जाएंगे,
फिर एक दिन हम सब
सुबह के आने के बाद
रात की तरह
गायब हो जाएंगे।
©rangkarmi_anuj -
hindiwriters 1d
@feelingsbywords जी की कलम से निकली इन दो पंक्तियों को सराहें और इन्हें follow कर, इनका मनोबल बढ़ाएँ ।
बहुत उम्दा लेखन निधि जी । इन पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया आपने । ऐसे ही लिखते रहिये।
आपका लेख भी बन सकता है Hindi Post of the Day, बस दिल की बातें यूँ ही शब्दों में दर्शाते रहिये ।
#hindiwriters #hindipostHindi Post of the Day
कमज़ोर होते हैं रूढ़ियों के दरीचे,
जब जज़्बे उड़ानों के मजबूत होते हैं,
ढकोसलों के सरिया पैरों तले दबाकर,
तरक्की के निशान सबूत होते हैं ।
- निधि -
चुनो खुदको इस बार वैसे ही
जैसे भीड़ में हर बार उसे चुनते हो l
©eshaandpen -
कभी कर के देखना,
इक छोटू से नन्हें मुन्हें के पास बैठना,
उसकी तोतली बोली में,
उसकी हर बात समझने की कोशिश करना,
उसके छोटे से हाथों से अपना चेहरा छूना,
उसकी खुशबू महसूस करना,
उसकी आँखों की चमक में गायब हो जाना,
उसकी बेबाक हँसी को बस सुनते रहना,
इसके बाद,
शायद मंदिर जाना ही ना पड़े!!
©jigna_a -
ग़ज़ल
कभी मक़बरा भी सफ़र में मिला l
कभी मय-कदा भी सफ़र में मिला ll
मिलीं ठोकरें भी सफ़र में बहुत......
मगर तजरबा भी सफ़र में मिला ll
कहीं खल्वतों में गुज़ारा सफ़र.....
कहींं काफ़िला भी सफ़र में मिला ll
परिंदे फ़लक चूमते देखकर........
मुझे हौसला भी सफ़र में मिला ll
अगर गालियां भी सफ़र में मिलीं...
'ग़ज़ल' शुक्रिया भी सफ़र में मिला ll
©prashant_gazal -
आज़ादी
दो दिन तिरंगा फहरा लिया
गीत देश प्रेम का गा लिया
क्या यही है आज़ादी फ़ख़त
या दिल को बस फुसला लिया
हैं वही पानी, मिट्टी और हवा
फिर भी क्यूँ एक समान नहीं
इन 13२ करोड़ भारतीयों का
क्यूँ मज़हब हिंदुस्तान नहीं
जिस दिन मंदिर जाने की गली
मस्जिद की और भी जाएगी
जब हर रात दिवाली होगी और
हर दिन ईद मनायी जाएगी
जब हरे और भगवे के बीच
की जंग फ़ना हो जाएगी
सच कहती हूँ हाँ उस दिन
आज़ादी गीत सुनाएगी
जब अपनी बात सुनाने को
हिंसा का राह हम छोड़ेंगे
जब होंगे आंदोलन शांति से
कुछ तोड़ेंगे ना फोड़ेंगे
जब बिना आवाज़ उठाए भी
हर बात सुनाई जाएगी
सच कहती हूँ हाँ उस दिन
आज़ादी गीत सुनाएगी
जिस दिन देश की बेटियाँ
सिर उठा के बाहर आएँगी
जब उनकी लज्जा, चरित्र पर
ना उँगलियाँ उठायी जाएँगी
जब जन्म लेने से ही पहले
साँसें ना तोड़ी जाएँगी
जब ना कोई निर्भय की
लाज छीनी जाएगी
सच कहती हूँ हाँ उस दिन
आज़ादी गीत सुनाएगी
जब टूट जाएँगी दीवारें
खिड़कियाँ खुल जाएँगी
जब जातिवाद के नाम पे
चीजें ना बाँटी जाएँगी
जब भारत का नाम सुनते ही
दुनिया अपना शीश झुकाएगी
सच कहती हूँ हाँ उस दिन
आज़ादी गीत सुनाएगी
©monikakapur -
सूरजमुखी सा प्रेम है मुझे तुमसे,
उसे पता है, सूर्य का सान्निध्य,
कभी प्राप्त नहीं होगा,
अपितु वो सदैव खुश रहता है,
इतने अंतर से भी,
क्योंकि आत्मिक रूप से,
वो अपने प्रियतम के निकट है,
बस दिशाहीन ना बनना है,
फिर विरह कुछ नहीं होता!!
Jignaa
©jigna___ -
पनिया भरन पनिहारी चली,
काम काज में ढली दुपहरी,
तपती धूप और धरा जली,
छलक छलक जाती गगरी।
मीठी मीठी छाँव तले,
मंद समीर सुगंध बहे,
तप्त भूमि में पाँव जले,
नाज़ुक बाला कैसे सहे,
ऐसे में छैया लागे भली,
छलक छलक जाती गगरी।
सरक सरक जाती चुनरी,
घूंघट पट हँसती नारी,
लाज शरम काहे बिसरी,
नार अकेली सब सारी,
मन भर झूला सब झूली,
छलक छलक जाती गगरी।
पनिया भरन-----------
Jignaa
©jigna___ -
नदियाँ सी...
बन जाऊँ मै कभी चंचल नदियाँ सी,
चलू उछलती,इठलाती बलखाती सी।
लहरों की तरंग बन तोड़ दूँ हर बंधन,
थोड़ा सा तो जी लूं मैं खुद का जीवन।
रंग बिरंगी मछलियों से कर लूं यारी,
अपनी मुट्ठी मे भर लूं ये जन्नत सारी।
खुले आसमां के नीचे जल तरंग बजाऊँ,
दिल का तूफां समेटे चट्टानों से टकराऊँ।
खेत खलिहानों से होकर गुजराती रहती,
हरियाली की अनुपम छटा मै बिखेर देती।
मीठी नदियाँ का पानी जो मै बन जाऊँ,
तो शायद हर गले की प्यास बुझा पाऊँ।।
©archanatiwari_tanuja
