नया साल
इस साल भी हिसाब न लगा पाया
कि क्या खोया और क्या पाया
न होली के रंग दिखे, ना बैसाख की बैसाखी
बच्चों की स्कूलिंग पूरे साल की थी बाकी
गर्मियां gyi पूरी ac औऱ fan के नीचे
पता ही ना लगा कैसे मेहनत का पसीना सोखे
फीका सा था राखी का त्योहार
कई भाइयों की कलाई सूनी रही इस बार
न कटी कोई पतंग ना माँझा ना डोर
यूँ ही बढ़ गए हम साल की अंत की ओर
दिवाली और करवा चौथ का भी पहले जैसा ना था जोश
क्यूंकि इक महामारी का रहा पूरे साल ही खौफ
धीरे-धीरे बीत गए महीने साल के
दिखा गए दिन कुछ बुरे कुछ कमाल के
दे गए कुछ सबक कुछ जिम्मेदारी
मिल गयी फुर्सत उनको भी जिनको थी busy रहने की बिमारी
दूरिया दिलों की मिटा गया
सबको adjust करना सीखा गया
Safety और immunity इस साल की importance थे
Lock down औऱ quarantine इस साल की सियासत थे
अब जो आने को है ये नया साल
देखो क्या क्या देता है ये सम्भाल
जो पल बीते अपनों के साथ मुस्कुराते हुए
शुक्राना करो रब का हाथ जोड़ सर को झुकाते हुए। ।।।
©gurwant
gurwant
-
-
gurwant 5w
Kabhi to....
Kbhi to frk pdta nahi unki kisi b baat se
Kbi unki kahi ik baat b seena chalni kr deti h
Kbi to kuch b hota nahi hzaaro gaaliya sunkr
Kbi unki hlki si berukhi aankhein bar deti h...
Kbi to ik chot se hi ghayal ho jata h dil
Aur kbi zehr pe k b zindgi khtm nahi hoti h
Kbi to hoti nahi nfrt hzaar shikwo k baad b
Aur kbi teri koi ek hrkt hi ranj kr deti hai..
Kbi dil krta h kru khul k baatein tujse der saari
Aur kbi bol k sb kuj b ansuni reh jati h
Kbi dil krta h ldkr khoob kru gila tujse
Kbi chuppi hi saare raaz khol deti h...
©gurwant -
gurwant 6w
.
-
As knowing truth, lies spark me
-
सीख
मैं तुम्हारी सोच की बांदी नहीं
तुम्हारे हदों की आदी नहीं,
मैं तुम्हारे कर्मों का हिसाब नहीं ,
मैं तुम्हारी बुझने वाली प्यास नहीं।
ना आज हूँ, ना कल थी,
ना अभी हूँ ना किसी पल थी
तुमने हर कोशिश की, बहुत कोशिश की
हर रास्ता अपनाया, हर जोर मुझपर चलाया
मेरी रूह की आग ना बुझी
मेरे अन्दर की नार ना थमी।
जितना तुमने मुझे कुरेदा, उतना मैं उभरी
जितना तुमने मुझे दबाया, उतना मैं उपर उठी
जितना तुमने अपने अहम को बढ़ाया,
उतना मैंने अपने आत्मविश्वास को।
जितना तुमने मुझे तरपाया
उतना मैंने दूर किया तुमको खुद से
जितना तुमने रोका मुझे
उतना ही आगे बढ़ाया मैंने खुद को
यह डर जो तुमने मुझमे बसाए थे
डर खोने का, डर मजबूर होने का
डर जिंदा लाश बनने का ,डर नाश करने का
डर परिवार का ,डर समाज का
डर अपमान का, डर रस्मों रिवाज़ का
लो आज मैं जीत गयी
क्यूंकि हर डर से लड़ना सीख गयी ।
प्रेरणादायक मेरी कहानी हो गयी ,
जब से सहने की आदत पुरानी हो गयी ।।
©gurwant -
gurwant 7w
एक सा
अपने बारे में सोचूं या तेरे बारे में एक सा ही लगता है।
ये रिश्ता जो खामोश सा है, बनाम सा लगता है।
तुझे देखूं, तुझे चाहूँ, तुझसे चाहत के हर मोड़ पे मैं क्या बताऊँ मुझे क्या क्या लगता है।
टूटते जुड़ते अरमानो के साये में जिंदगी गुज़ारना बेमतलब सा लगता है।
देके उम्मीद तोड़ देना,नसीब करता मज़ाक सा लगता है।
इस अनकहे इज़्हार को प्यार कहूँ या क्या नाम दूँ,
अब तो ये एहसास भी करता बदनाम सा लगता है।
तू क्यूँ मुझपे असर ऐसे करे जैसे कोई अपना करता है।
अब तो आके बता जा, तू मेरा क्या लगता है।
©gurwant -
मज़हब
चलो इक ऐसा मज़हब बनाएं
जहाँ सिर्फ इंसानियत के किस्से गायें
राग रहीम और कबीर के दोहों का हो
मिठास सूरदास के गीतों की
भक्ति मीराभाई के प्रेम जैसी
और संदेश गुरु नानक के वचनो का हो।
चलो इक ऐसा मज़हब बनाएं।
दर्द राम सीता के बिछड़न का हो
और आँखे इकबाल की भर आयें,
जुम्मा नमाज़ और आरती माता की
खान और सरदार एक साथ गायें।
चलो इक ऐसा मज़हब बनायें।
सुन मन्दिर के नगाड़े या मस्जिद की अज़ान,
खुद को ना बान्टे हिन्दू और मुस्लमान
ईद की सवैइयां और दिवाली की मिठाई
सब एक साथ मिलकर खायें।
चलो इक ऐसा मज़हब बनाएं।
अवल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपजया कौं पले कौं मन्दे।।
गुरु नानक का ये संदेश,
काश जन जन समझ जाए।
चलो इक ऐसा मज़हब बनाएं
आओ इक ऐसा मज़हब बनाएं।।
गुर्वन्त कौर -
gurwant 7w
अखियां
रात रात भर तेरे प्यार में रोईं हैं अखियां,
जब भी तूने बेरुखी निभायी हमसे,
बिना कुछ बताये तुमको
हमनें भिगोई हैं अखियां
करते रहे वफा तमाम उम्र तेरे प्यार की चाह में,
फिर भी आज तक है खाली हाथ
जाने क्यूँ ये पाई है ठगिया
हम पास होके भी दूर रहे और
गैरो के संग उन्होनें बितायी है बतिया
कमी कहाँ रही समझ ना सके
आगाज ए इश्क भी तन्हा थे
अंजाम ए इश्क भी तन्हा हैं और उन्होनें हर पल नई बनाई है सखियाँ।
©gurwant -
gurwant 8w
पागल कवि
जब खोई होती हूँ ख्यालों में,
शब्द भंवर के सवालों में
कोई पुकारे तो भी सुनाई नही देता
फिर आवाज़ आती है
अरे पागल, कहाँ खोई है
कहाँ सोई है।
सही है
पागल ही तो हूँ मैं
इक कवि जो हूँ मैं
हाँ कवि पागल ही तो होते हैं,
मन के भावों को जो शब्दों में पिरोते हैं।
दुनिया कुछ और सोचे,
ये कुछ और ही सोचते हैं
सीधी सी बात को अल्फाज़ो के मायाजाल में दबोचते है।
हाँ कवि पागल ही तो होते हैं।
हो सावन की पहली बारिश या मयूर नाच की हो साजिश
खुदा की कायनात को देख झूम उठते हैं
और इन्सां की हैवानियत को देख रोते हैं।
हाँ कवि पागल ही तो होते हैं।
बन जाते हैं आशिक कभी,
कभी रहनुमा किसी के
कभी भावुक से अल्फाज उनके
लिप्त हो उठते हैं देशप्रेम में,
आंसुओ को समेट अपने जो नगमें संजोते हैं।
और टूटे हुए दिलो को लड़ियो मे पिरोते हैं
हाँ, कवि पागल ही तो होते हैं।
गुर्वन्त कौर।
©gurwant -
gurwant 8w
#unsatisfaction
We can never be satisfiied with what we have..
Always in need of more and more....its human nature....to be uncontended always.....भूख
परिंदों के साथ उड़ने की दुआ करते थे
हम जब ज़मीं पे हुआ करते थे।
पंख दिये खुदा ने जब तो पूछा,
बता बन्दे है तेरी उड़ान कितनी?
माप रहे थे हम ज़मीं से आस्माँ की उंचाई को,
परिंदों के साथ उड़ते हुए भी चैन ना था,
पूछा उसी से कहाँ है ठिकाना तेरा?
बोला वो उड़ ले चाहे जितना आस्माँ पर
बसेरा तो अपना ज़मी पर है,
बुलंदियों के साथ भूख बढ़ती है,
होंठ सूखते हैं ।
सूकून तो अपना ज़मी पर है।
प्यास बुझा लो उड़ने की पर धरती पर फिर आना है
इसी मिट्टी से जन्मे थे, इसी मिट्टी में मिल जाना है।
©gurwant
-
shivheras 13w
I definitely agree machines will take over humans.
As machines understand more then humans...
