चिट्ठियों का दौर भी क्या दौर रहा
कि आंखे इंतज़ार में हुआ करती थी
पोस्टमैन की घण्टी बजते ही
मन मे सारे ख़्वाब बन जाया करते थे
कुछ तंगी की बातें , कुछ यूं ही हाल चाल
और लिखे अक्षरों पे हाथ फेरते मानो
गले लगे हों चूड़ियों की खन खन ,
कुछ गाँव के किस्से कुछ मतलबी बातें
कुछ उम्मीदें कुछ इंतज़ार
चिट्ठियों का दौर भी क्या दौर रहा
कि आंखे इंतज़ार में हुआ करती थी
कि आंखे इंतज़ार में हुआ करती थी
©geetabhardwaj