बुनाई
उस ऊन की रौनक.....
कुछ और हीं होती है,
माँ ज़ब अपने हाथों से,
वो धागे पिरोती है!!
यूँ तो मुझे बुने कपड़ों का शौक नहीं.....
पर उनके हाथों से बने हों.....
तो शर्दी का भी कोई खौफ नहीं!!
छोटे छोटे फूल -पत्तियों से....
वो कुछ ऐसे आकृति बना जाती हैं,
जैसे छोटी छोटी खुशियाँ जोड़कर....
हमें जीवन जीना सिखाती हैं!!
उनी स्वेटर, टोपी, मोज़े......
बनने के बाद क्या बढियाँ सा लगता है!!
ये बुनाई - कढ़ाई बस कला नहीं....
खाली समय बिताने का,
एक जरिया सा लगता है ❤.
©ritu_lata