अर्ज़ी !
जब मैं कहती हूं , बेशक मुझे नहीं है मोहब्बत ,
फिर ये सीने में दिल लाकर कमबख़्त रखता कौन है ?
जब मैं कहती हूं कि दिल बहोत साफ़ है मेरा ,
तो यूं बार-बार चीर कर परखता कौन है ?
अब जैसे इस मसले का कोई हल मुझे मालूम नहीं पड़ता ,
भला , हर दफ़ा एक ही ज़ख्म से उभरता कौन है ?
यूं तो इज़्ज़त है बहोत तेरी , मेरे जहां में मग़र ,
तेरे ख़ौफ़ में भी रहकर , तुझसे डरता कौन है ?
चलने हैं मुकदमे कई तुझ पे भी ख़ुदा ,
गलत हूं तो बता , यहां तेरी मर्जी से मुकरता कोन है ?
वो भी रहा होगा बेशक कभी तेरा ही ग़ुलाम ,
बता , तेरी रज़ा के बग़ैर , गु़नाह करता कौन है ?
©श्रेया
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shreyah 9w
'गर ये पढ़ कर आप नाराज़ हैं , तो गलती आपकी है जनाब ,
मुझे पढ़ने वालों के मन में आक्रोश नहीं रहता ,
मैं जब लिखती हूं तो यकीन मानिए ,
क्या लिखती हूं , इसका बेशक मुझे होश नहीं रहता !
Do you feel the transition in the verses ?