युही
मेरी याद भी अब तुझे भूलने लगी है
तू कपड़ो की तरेह मुहब्बत भी बदलने लगी है
तेरी तस्वीर जेहन से अब धुलने लगी है
अब मैं रोता नही हु तेरे वास्ते आँखे बस धुलने लगी है
मैं रोज तुझे रोज याद करता हु आयत की तरेह ओर एक तू है जो रोज अपनी तस्वीर बदलने लगी है
जान बस्ती है कहा बताया दोस्त को वो दुश्मनो से जा मिले
दरिया को चाहा तो वो समंदर से जा मिले
हर सकस दौरता है यहाँ भीड़ की तरफ
फ़िर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
ओर इस दौर मे सब कुछ सही हो नही मुमकिन
ये जरुरी नही जिस सक्श की खाता हो उसी को सजा मिले
मुहब्बत लाइलाज बीमारी है इसमें सब कुछ भूल जाते है
जावा नजरों पे वो ऊगली उठाना भूल जाते थे
ये पुराने लोग है ये अपना जवाना भूल जाते है
जो गालिया देते है मुहब्बत को अपनी पुरानी कहानी छुपानी भूल जाते है
कुछ नसीबो मे उम्र भर के वो हाथ नही होते
कुछ मिलते है सफर मे जिनसे फ़िर मुलाक़ात नही होते
हवा भी रुख मोर लेती है आज कल हमें देख के
मिलते तो है वो रोज हमसे सैर पे बस अब उनसे हमारी बात नही होते
मेरी कलम
©rohitsrivastva
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