कुछ रात ढ़ले, कुछ दिन भी ढ़ले.!
कुछ छोड़ दिये, कुछ साथ चले.!
आओ तुमको कुछ बात बताऊं.!
चलो तुम्हे मुस्कान दिखाऊँ.!
कभी रोटी नही थी खाने को,
अब राजभोग से ऊबते है.!
वो सड़क पे सोने वाले को,
अब मखमल के गद्दे चुभते है.!
तब खुश थे ,अब कैसे दुखी हुए,
आओ इसका अंतर समझाऊँ.!
चलो तुम्हे मुस्कान दिखाऊँ.!
जीवन वीराना जंगल सा,
चहुंओर भरा अंधेरा है.!
मानव रूपी इस वृक्ष धरा पर,
माया ही करती बसेरा है.!
वो सूरज की पहली लाली से..
कैसे चमके ये राज बताऊँ,
चलो तुम्हें मुस्कान दिखाऊँ.!
मानवता कितनी बिखर चुकी,
मानव-मानव में दूरी है.!
प्यार,मोहब्बत पता नही है,
वाद-विवाद तो पूरी है.!
अपने ही घर से शुरू करे हम,
फिर पूरे देशो में इसे फैलाऊँ.!
शुरुआत किसी को करना ही है,
क्यों ना मैं पहला बन जाऊं.!
फिर हम सबसे यही कहेंगे,
चलो तुम्हे मुस्कान दिखाऊँ.!
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