कुछ पल ज़िंदगी की गुल्लक में डाले थे
गुल्लक फोड़ी तो तजुर्बे बाहर निकले
सीखा गए जीने का शऊर हम को
बना के हम को ज़रा होशियार निकले
कह गए कि दिल टूटने से बचाना है ग़र
उम्मीदों से हो दरकिनार निकलें
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं हक़ीक़त कभी ही होते
हक़ीक़तों की पालकी में हो सवार निकले
तजुर्बे ही सिखाते हैं जीने का हुनर
किसी की रूह से नज़र आर पार निकले
ख़िज़ाँ को भी ज़रा जी भर देखें तजुर्बा कहता है
नहीं ज़रूरी की हर बार मौसमे बहार निकले
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