कई दिन गुज़र गए,
गाव के कदम शहर गए।
न दिल मिले, न मन्ज़िल मिले,
रातों के तारे सहर गए।
किस रोब मे जी रहे हैं सब,
दिल से सब कयामत के कहर गए
मुस्कुराते है खुदा भी ये देख कर,
समुन्दर को छोड़कर सब नहर गए।
ख्वाहिशो मे ऐसे डूब गए है सब,
दिल से सब के सबर गए।
खुदा से मागे खुदा से भागे,
इस कदर गुनह मे सब बसर गए।
क्या सही, क्या गलत भूल कर ,
झूठ मे सभी बसर गए।
saher fatima ' fatima'
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ssaher 9w