दस रुपए का नोट
दिवाली की सफ़ाई में
निकाला मैंने पुराना कोट
मुड़ा- तुड़ा, घिसा- फटा
जेब में था ‘दस रुपए का नोट’
एक समय था जब इतने में
मिल जाते थे पेंसिल- कटर
स्केल ख़रीदने के बाद भी
बच जाते थे कुछ चिल्लर
कभी ‘जलेबी’ दस की दे दो
कर दो पैक ‘समोसे’ दस के
मेला-सर्कस-रामलीला
सभी चलता भरोसे दस के
दस रुपए में आते थे
गाजर,मटर,टमाटर
वॉलेट में पिताजी के रहते थे
दस-दस के नोट भरकर
ये ५००-२००० के नोटों ने
सब खेल बदल डाला
वॉलेट में नोटों की भीड़ में
खो सा गया ‘दस का नोट’ बेचारा
कभी करारा-ताज़ा चमकता नोट
कैसे मुँह फुलाये बैठा है
बटुवे की सिलाई में दुबक
सिसक कर मुआ सा बैठा है
ख़ैर सफ़ाई हुई कोट क़ी
याद आई नोट की
निकल आए क़िस्से पुराने बातों में
फिर कोई नोट मिलेगा, धूल खाता किताबों में
समय-समय की बात है
कल का राजा है आज फ़क़ीर
हमने भी कलम चलाते- चलाते
लिख डाली काग़ज़ के चंद टुकड़ों की तक़दीर
©prerana_dr30