ठूंठ
सोचा कुछ लिखूँ
क्या लिखूँ पता नहीं
कलम उठाऊँ तो हाथ ना चले
कहना चाहूँ तो लब न खुले
वक्त बदला ,लोग बदले
और बदले हालात
किस्से - कहानी - किताबों में
अब नहीं पहले जैसी बात
खोखली इमारतों में
खोखले परिंदे
फड़फड़ाते पंख
डगमगाते कदम
काँच के चंद टुकड़े
चुभ गए
सह गए सब दर्द
ख़ामोश ही रह गए
सूखे पत्ते की तरह
सूखे हैं हम - तुम
गिर पड़ेंगे पेड़ से
एक हवा के झोंके से
कुछ नहीं रह जाएगा
ना शाख़ ,ना जड़
मिट्टी - मिट्टी हो जाएगी
ठूंठ की अकड़ !!
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happy go lucky, Capricorn, fightergirl , traveller , translator , writer, poet
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You are lucky
If you are stuck
At home with your own parents
During this lockdown
Blessed ,if you are
Getting good food
And sleep
During these tough times
Fortunate , if you are
Breathing fresh air
Eating homecooked food
During the pandemic
Advantaged, if you are
Getting paid on time
And haven’t lost your work
During covid times
Be thankful for this life
And Grateful for today
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दस रुपए का नोट
दिवाली की सफ़ाई में
निकाला मैंने पुराना कोट
मुड़ा- तुड़ा, घिसा- फटा
जेब में था ‘दस रुपए का नोट’
एक समय था जब इतने में
मिल जाते थे पेंसिल- कटर
स्केल ख़रीदने के बाद भी
बच जाते थे कुछ चिल्लर
कभी ‘जलेबी’ दस की दे दो
कर दो पैक ‘समोसे’ दस के
मेला-सर्कस-रामलीला
सभी चलता भरोसे दस के
दस रुपए में आते थे
गाजर,मटर,टमाटर
वॉलेट में पिताजी के रहते थे
दस-दस के नोट भरकर
ये ५००-२००० के नोटों ने
सब खेल बदल डाला
वॉलेट में नोटों की भीड़ में
खो सा गया ‘दस का नोट’ बेचारा
कभी करारा-ताज़ा चमकता नोट
कैसे मुँह फुलाये बैठा है
बटुवे की सिलाई में दुबक
सिसक कर मुआ सा बैठा है
ख़ैर सफ़ाई हुई कोट क़ी
याद आई नोट की
निकल आए क़िस्से पुराने बातों में
फिर कोई नोट मिलेगा, धूल खाता किताबों में
समय-समय की बात है
कल का राजा है आज फ़क़ीर
हमने भी कलम चलाते- चलाते
लिख डाली काग़ज़ के चंद टुकड़ों की तक़दीर
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There are days I just want to be a daughter .......
And this happens EVERYDAY!!
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गुज़र रही हूँ मैं
वक़्त गुज़रता नहीं
गुज़र रही हूँ मैं
नदी के पानी सा कल-कल बहाव
कनक पुष्प लताओं सा कोमल स्वभाव
नादानियों से भरा बचपन गया कहाँ
तालाब के पानी की तरह
ठहर गई हूँ मैं
वक़्त गुज़रता नहीं
गुज़र रही हूँ मैं ।
सरल- सुगम - सुरम्य सा
जीवन का एक संगीत था
धुनें बदल गईं कई
और वाद्य भी नए- नए
सरगम के सुरों सा क्यों
बिखर गई हूँ मैं
वक़्त गुज़रता नहीं
गुज़र रही हूँ मैं ।
कभी आँगन में खेलती
मिट्टी की गुड़िया से
बातें करती इधर-उधर की
कभी आँगन में नन्ही गौरय्या सी
नाचती फुदकती और उछलती
आज पंख पसारती हुई
खुद में ही सिमट गई हूँ मैं
वक़्त गुज़रता नहीं
गुज़र रही हूँ मैं!!!!
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एक वक़्त था जब लोग सौंच के बाद हाथ धोया करते थे ।
आज सोच के बाद भी हाथ धोने पड़ रहे हैं!!
यूँ ही ... #कलमकहानीऔरमैं
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#चाय #चायसेप्यार #घरपेरहो #चायपियो #Hindipoems #morningthoughts #earlymorningteabreaks #teaislove
चाय की तलब!
सुबह हुई, आँखें खुलीं
पैर बढ़े रसोई की ओर
अदरक-इलाइची कूटे गए
पानी खौला एक ओर ।
आया उबाल चाय में जब
स्वाद बना कड़क तब
चाय का प्याला भरा गया
अब बुझेगी शायद तलब ।
लिया हाथों में प्याला
अधरों से लगा डाला
अदरक की ख़ुशबू, चीनी की मिठास ने
आज फिर से पागल कर डाला।
क्या ख़ाक कमाया जीवन में
जिसने ‘चाय’ कभी पी ही नहीं
सही मायने में देखा जाए
बेचारे ने ज़िंदगी आज तक जी ही नहीं।।
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सबको जाना था दिल्ली
काम की तलाश में
भूख में,प्यास में
हताश व निराश हो
सबको जाना था दिल्ली
पहाड़ को छोड़ पीछे
भूलकर आँगन- बाग़ीचे
हरे मैदानों को त्याग
माचिस के डिब्बे जैसे
घरों में बसने
सबको जाना था दिल्ली
मेहनत- मज़दूरी खेतों में
कर लेते तो घिस जाते
गेंहू - मक्के की खेती कर
चक्की में ही पिस जाते
मॉल का फ़ैशन अपनाने
सबको जाना था दिल्ली
बेटे की पहाड़ में है एक दुकान
कहने में लाज सी आती थी
दिल्ली में नौकरी करता है
कहकर ईजा भी इतराती थी
होटलों में भान माँजना
ज़्यादा अच्छा लगता था
पहाड़ की जीवनशैली से बोर हो
सबको जाना था दिल्ली
धुँआ- मेट्रो- शोरगुल की ऐसी हुई आदत
आज वही शहरी टीमटाम व लाइफ़स्टाइल
बन गए अचानक एक आफ़त
गाँव की ज़मीन बेच कर
सबको जाना था दिल्ली
एक विषाणु ऐसा आया
नाम कोरोना कहलाया
बसों- गाड़ियों में भर-भर
हर भगोड़ा वापस पहाड़ आया
कहते थे जो महापुरुष
गाँव में क्या रखा है?
आज वही पास बनवाकर
बनने चले हैं आत्मनिर्भर ?
शहर का धुआँ हार गया
गाँव की मिट्टी के आगे
पहाड़ का बच्चा वापस आया
ढेरों रोज़गार के अवसर जागे
हर किसी ने पहाड़ का रुख़ किया
जिस- जिस को जाना था दिल्ली ।
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मेरी सृष्टि, मेरी जननी
मेरी सृष्टि मेरी जननी
तू मेरे जीवन का सार
त्याग किए, बलिदान दिए
प्यार लुटाया अपरम्पार ।
जन्म लेने से भी पहले
तुझसे जुड़ गया एक नाता
यूँ ही नहीं कहते हैं
माँ का ऋण चुकाया नहीं जाता ।
जीवन का पहला पाठ पढ़ाकर
तू बन गई पहली शिक्षक
रात -रात भर जगी रही
तू ही थी पहली रक्षक ।
मेरे साथ खेलती थी
तू मेरी पहली मित्र बनी
मन- मस्तिष्क पर छाप छोड़ दी
जीवन के कैनवास का सबसे सुंदर चित्र बनी।
माँ अपने शिशु के लिए न जाने क्या क्या कष्ट सहे
जगत से जंग करें हज़ारों, पर मुँह से वह कुछ न कहे
कभी लक्ष्मीबाई बनकर ,अंत समय तक लड़ी
कभी सीता बनकर अग्निपरीक्षा में रही खड़ी
माँ से मैं हूँ, तुम हो, सब हैं
माँ मेरा ईश्वर है, रब है
त्याग-तपस्या की मूरत है सर्वस्व है
माँ ही है वह दिव्य रूप, जिससे मेरा वर्चस्व है ।
डा० प्रेरणा जोशी
😊
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एक वीर की माँ
सीने में रखकर चट्टान कोई
जाने उस माँ ने क्या सोचा था ,
अपने जिगर के टुकड़े को
दूर सरहद पर जब भेजा था ।
हर बार यही पूछा करती
नम आँखों, काँपती आवाज़ में
कैसा है तू ,कब छुट्टी पर घर आएगा
दिवाली पर साथ होगा या वहीं दिए जलाएगा?
हर बार यही कहता ‘अच्छा हूँ माँ
बस जल्दी छुट्टी आऊँगा
घर पर ही दिए जलाएँगे
तुझको नई साड़ी भी दिलाऊँगा ‘
कैसी कठिन परीक्षा है
फँस गया हूँ किस जाल में ?
एक माँ बुलाती है घर पर
दूसरी की रक्षा करनी है हर हाल में ।
लौटा रही हूँ तुझको लाल तेरा
तिरंगे में लिपटा हुआ ,
तू जान ले,मेरी रक्षा करते करते
वह अंत समय तक डटा रहा ।
मेरा लाल कब था मेरा ?
वह तो घर पर भी तेरी बातें करता था,
चार दिन छुट्टी पर आता
फिर जाने की ज़िद करता था ।
दोनों माँ एक दूसरे से
बहस- प्रश्न करती रहीं
पुत्र था वह किसका
इसी पर लड़ती रहीं ।
आज दोनों की आँखें नम हैं
दोनों के हृदय में बेटे के जाने का ग़म है ,
एक से जन्म लिया,दूसरी के लिए क़ुर्बान हुआ
वीर के साथ,माँ की ममता का बलिदान हुआ।
©prerana_dr30
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कुछ एक की तो सियाही मिटने लगी है
कुछ पे मिट भी गयी है
अपनी याददाश्त की सियाही से भरे है
कुछ फ़सानों के साथ लिखे है
कुछ तो इतनी धुंधली हो गई है, फिर भी
संभाली हुई है
हालांकि मुहज़बानी याद है
फिर भी संभाली हुई है।
तुम्हारी एक एक याद
दिल की फ़ाइल में
पिन करके रखी हुई है
वैभव जोशी।
©vaibhavjoshi_ -
किरदार बदल लेना
जब कभी रिश्ता भारी सा लगने लगे
बोझ बड़ने लगे,
लगे कि एक दूजे को समझने में मुश्किल हो रही हो......
किरदार बदल लेना।।।।।।
किरदार बदल लेना
मैं तुम हो जाऊंगा, तुम मैं हो जाना
फिर देखना कितना आसान हो जाएगा
समझना एक दूजे को
गुस्सा नर्म हो जाएगा
रिश्ता फिर हल्का हल्का सा महसूस होगा
और देखना कितना आसान हो जाएगा
एक दूसरे का साथ रहना
वक़्त के जो रास्ते अटपटे लग रहे है
सहज लगने लगेंगे
और जब सब ठीक हो जाये, फिर
किरदार बदल लेना।
वैभव जोशी।
