ना तारीफ़ों की फ़हरिस्त ना तालियों की गड़गड़ाहट चाहिए
मेरे बेरुख महफ़िल में तेरे आने की आहट चाहिए
©rangkarmi_anuj
rangkarmi_anuj
"स्वयं अक्स"
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rangkarmi_anuj 12h
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एटलस
प्रेम पतंगों की तरह
उड़ उड़ कर, तुम
तक पहुँच जाऊँ
कहाँ कहाँ नहीं
गया बाग बगीचा
और पुराना उस
किले का गलीचा,
सबूत तक ढूंढे
मैं हाथ मे लिए
आवर्धक लेंस से,
और अपनी छटी
इंद्रियों की शक्ति
से जिसे कहते हैं
हम सिक्स सेंस।
दिशा सूचक यंत्र
भूल गया था अपना
मंत्र,मतलब की कंपास
कभी उत्तर कभी
दक्षिण दिखाए,तो पूर्व
पश्चिम में अपने बिंदुओ
में भर्मित हो कर
खुद फंस जाए, थोड़ा
प्रयास द्विनेत्री से
भी किया कि दर्शन
हो जाते, पर बाइनोकुलर
कोहरे में खो गया और
मेरे काम बिगड़ जाते।
गर्म हवा का गुब्बारा
भी फुस पड़ गया
तुम तक पहुँचने से
पहले अरे हाँ वही
अंग्रेजी वाला हॉट
एयर बैलून, और
बेचारा झाड़ियों
में फंस गया, लेकिन
मेरा सारथी एटलस
मेरे साथ था, जो
तुम पर नज़र रखे
हुए था, साथ में
जीपीएस भी जो
मैने तुम्हारे बटुए में
रखा था, इन दोनों
ने सहारा दिया और
बहुत परिश्रम के पश्चात
तुमसे भेंट करा दिया।
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आत्मलेख
अंतराल- जीवन की परिभाषा सब लोग कहीं न कहीं व्यक्त कर देते हैं जिसमे वह पूरा करने का प्रयास करते हैं तो कुछ अपूर्ण कार्य की तरह मध्य में छोड़ कर विलुप्त हो जाते हैं। तब उनके उस अपूर्ण कार्य के समक्ष कार्य प्रगति पर है अन्य व्यक्ति उल्लेख कर के उसी जगह पर अपना कार्य करता है। कोई भी कार्य यदि स्वच्छ मन से किया जाए तो मानव जगत का उद्धार होता रहता है जिसमे मानवता भी सत्य के मार्ग पर अग्रसर रहती है, मनुष्य तब मनुष्य के प्रति संवेदनशील रहता है और वह अपने आपको उच्च स्तर पर ले जाने के लिए प्रयास करता रहता है।
अब इसके विपरीत प्रभाव को समझें कि कार्य में और विचारों में नग्नता को देखने की लालसा हो तो तब क्या होगा, उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि वह व्यक्ति एक लार बहाते हुए भेड़िए की भांति दिखाई देता है। यह तो वीभत्सता को दर्शाता है, यह सत्य है कि वह व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं और वह बहुत कष्ट में है परन्तु हम उसे समझाते भी हैं तो वह हम पर प्रहार कर देगा जैसे कि भेड़िया करता है, यह मनुष्य के अंतराल हमे तो पग पग में दिखाई देते हैं।
हमारे आस पास, समाज और कभी कभी घर पर भी और कुछ घटनाएं घट भी जाती हैं अनिश्चित काल में और जब उसे प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं तो तब हृदय में रक्त का संचार रुक जाता है और पूरा शरीर ठंडा पड़ जाता है। यदि उस घटना को अवरोध उत्पन्न करने लिए हम समय को भूत में ले जा पाते तो वह ऐसा नहीं हो पाता, परंतु यह संभव नहीं है। अंतराल यदि हम अपने अनुसार निर्धारित कर सकते तो कोई भी उच्च और तुच्छ कार्य को नियंत्रित कर सकते और मनुष्य को उसके कर्म की गणना स्वयं करनी पड़ती। यह मात्र विचार है हम सबके मनुष्य के, पर सबको विचार तो करना होगा।
©rangkarmi_anuj -
एक मौसम ग़म का यहाँ भी आया था
उस बरसात में शायद तेरा ही साया था,
मैं भीगता रहा उन काले बादलों के नीचे
नदारद रही सड़क पर तू नहीं आया था।
©rangkarmi_anuj -
rangkarmi_anuj 5d
"घाम" (धूप)
घाम निकल आया
और कलेबा की
बेला आ गई, कुछ
पथिक चल पड़े
अपनी यात्रा पर
उनके लिए फिर से
नई राह आ गई,
चहुँ ओर पंछियों
का शोर, उमंग तरंग
से भरा है भोर, निशा
की पुनः से श्वास आ
गई, घाम निकल आया
और कलेबा की
बेला आ गई।
समय के परिवर्तन
में गर्म का स्वागत
होने लगा, ताप और
भाप सब जगह पर
छाने लगा, स्वेद
और तपिश का
आवेग तृष्णा को
आमंत्रित कर रहे
हैं, वृक्ष और छाया
सामंजस्य से सबको
आश्रित दे रहे हैं,
नदी के जल के
लिए उत्तरदायित्व
आई, घाम निकल आया
और कलेबा की
बेला आ गई।
गगन के मेघ
मानो छुप से गए
हैं, वह सभी कहीं
पर रुक से गये हैं,
क्षितिज जाकर
उन्हें निमंत्रण दे
आए, प्रतीक्षा में
कुछ लोग उनसे
हैं आस लगाए,
ज्वलन की प्रक्रिया
अस्थिर कर रही है
रह रह कर तन मन
को बहुत अधीर कर
रही है, यह कार्यप्रणाली
आज फिर से प्रारंभ
हो गई, घाम निकल आया
और कलेबा की
बेला आ गई।
©अनुज शुक्ल "अक्स"
PC- Google/RightfulOwner
#Hindinama
@bal_ram_pandey ji @rani_shri ji @my_sky_is_falling ji @lazybongness ji @theshekharshukla jiघाम
©rangkarmi_anuj -
नासूर ए काफ़िले में हमारी मौजूदगी दर्ज़ कर दी गई
ज़ख़्म दर ज़ख़्म अज़ाब की परत में मर्ज़ भर दी गई,
मदमस्त आंसुओं की मेहरबानी अब आँखों से क्या कहें
खुले आम रात भर मिसरे, शायरी पर अर्ज़ कर दी गई।
नसीब की करामत पर सच में तकलीफ़ नहीं होती है
यहाँ सब जानते हैं वाह वाही में तारीफ़ नहीं होती है,
मसला यह बन गया कि मज़ाक उड़ाया करते हैं सब
लेकिन मातम पर बेतलब किसी के ज़रीफ़ नहीं होती है।
दिल के फफोले फोड़ने कम से कम क्यों यहाँ आते हैं
बल्कि अपनी मुसीबत सिर पर रखने क्यों यहाँ आते हैं,
एक तो इल्ज़ाम ऊपर से रहम की गुहार भी लगाते हैं
कोई बताएगा ऐसे बनावटी बार बार क्यों यहाँ आते हैं।
शराफ़त और आफ़त दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है
पास आकर यह तो बता दो कि किसका मज़ा जकड़ा है,
शान ओ शौक़त रूतबा धूल बनकर उड़ जाती है यारों
गौर से देखना मरने के बाद कोई न कोई मुर्दा अकड़ा है।
©rangkarmi_anuj -
रज
हे,
अलंकारों के स्वर
तुम वर्ण की विडंबना
पृथक करो, आरोह
अवरोह की निरंतर
क्रिया को उच्च
पद में कृतार्थ करो।
व्यंजन में रस
की मिठास से
रसना को माधुर्य
कर दो, श्रवण
श्रुति की लय
बद्धता में ऊर्जा
का आह्वान कर दो।
हे,
ओज में विराजमान
विराट शून्य के
स्वामी तुम कार
के गीत गुंजित कर दो,
अंतर के घोर तिमिर
का शीघ्र अतिशीघ्र
समाप्त कर दो।
कर से प्रणाम
करें और प्राण को
रोम रोम अभिनंदन
कर दो, आज्ञा चक्र
के पारदर्शी स्थल में
सप्तरंग के रंग
को भर दो।
हे,
देह हे आत्मा
नश्वरता का सत्य
आत्मसात कर लो,
रज रूपी सब हैं
यह कर्म तुम कर लो
कि एक एक कण
रज के अपने साथ
में एक कर दो।
©rangkarmi_anuj -
rangkarmi_anuj 1w
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काल्पनिक है यहपहली सीढ़ी
पहली सीढ़ी
पर वो मुलाकात
खामोशी की,
नज़र मिली देखे
और चले गए
थोड़ा और रुकना
था, और
उतरते हुए
तुम्हे रोक लेना
था उस वक्त।
काजल की धार
और मृगनयनी सी
तुम्हारी आँखें
कैसे भूल सकता हूँ,
भुला नहीं सकता
थीं ही इतनी
खूबसूरत,कि
कहने के लिए
कुछ बचा ही
नहीं।
कान के लटकते झुमके
और माथे पर छोटी
बिंदी तारीफ़ कम
पड़ जाएगी, मैं
बयां नहीं कर
सकता हूँ मैंने
खूबसूरत अजनबी
को देखा था, कुछ
पल की वो
मुलाकात याद
रहेगी।
काश उन सीढ़ियों
की कतारें ज़्यादा
होती तो हम साथ
उतर पाते, पर
बनाने वाले ने
पन्द्रह कदम
की बनाई थी,
ज़्यादा बना देता
तो क्या हो जाता,
सीढ़ी खत्म हो गई
और अब मलाल
करने के सिवाय कुछ नहीं
बचा है।
©rangkarmi_anuj -
rangkarmi_anuj 1w
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"कृपया यहाँ से पढें"
"संवाद"
यह दिलचस्प बात तुमने कह तो दी पर मुझे तुमपर दिलचस्पी नहीं है, या यूं कहूँ कि इस जहां में मेरी कोई हस्ती नहीं है। क्यों ख़यालों में डूबे रहना, क्यों ख़यालों को समुंदर समझना, हम तो सूखा हुआ किनारा है और हमारी यादों की लहरें उठती नही हैं। तुम्हारी बात आज भी याद है कि कैसे मेरी बातों को तुमने आसानी से काट दिया था और अपनी बातों को सामने रख कर मेरी हर बात को टाल दिया था, यह ज़ुर्रत करके तुमने दिल नहीं मुझे तोड़ दिया और अच्छा हुआ मैंने तुम्हें नहीं तुमने मुझे छोड़ दिया।
आवारगी की गलियों में अब जाना पसंद नहीं।
अपने चाहने वालों से अब मिलना पसंद नहीं।।
माफ़ी दिल दुखाना नहीं चाहता था पर क्या करूँ मैं बहुत बदल गया हूँ, इसलिए अब किसी पर यक़ीन नहीं करता हूँ। यह बदलाव उसी दिन से आ गया था जब मैं दूर था और तुम दूरी का सबब बने हुए थे, हाँ बुरा लगता है जितना पहले लगा था बस फ़र्क इतना है कि अब बुरा लगने पर मुस्कुरा देता हूँ, और तकलीफ़ किसी और को होती है।
हम चाँद से रूठ कर बैठ गए हैं
और चाँद हमसे रूठ कर बैठ गया है।
तुम बताओ हम दोनों ऐसा क्यों कर बैठे भला
हक़ीक़त यह है कोई हमसे रूठ कर बैठ गया है।।
अब ज़ालिम ज़माना भी खूब मज़े लेता है हमारे ख़ैर यह होना ही था नहीं तो पहले हिम्मत नहीं होती थी कुछ कहने की, आज नज़रें मिला कर तुम्हारी बातों का ज़िक्र मेरे सामने खुल कर करते हैं। यह बदनामी का सिलसिला जारी रहेगा पर तुम पर आंच नहीं आने दूँगा तुम परेशान मत होना क्योंकि सारे इल्ज़ाम मैं अपने सिर ले लूँगा। गनीमत है कि तुम चले गए नहीं तो लोग तुम्हें बार बार कोसते कि तुमने मुझे बर्बाद कर दिया है, सच कहूँ बर्बादी को न्योता तो हमने दिया है।ज़ुबान पर अब नाम तुम लाना नहीं
हमारी याद में कभी तुम आना नहीं,
जो हो गया उसपर बात न छेड़ो
क़सम से तुम्हें कि दोबारा आना नहीं।।
यह नाराज़गी लाज़मी है पर मेरी आदत नहीं कि बार बार नाराज़ हो जाऊं, बस तुमको यहाँ निकलते देखा तो सोचा कि तुमसे कुछ कह दूँ और तुम्हें रोक कर अपने दिल की बात कह दी, शुक्रिया मेरी बातों को इतनी देर तक सुनने के लिए और अपना कीमती वक़्त मुझे देने के लिए नहीं तो लोग मनहूस समझ कर देखते तक नहीं है और तुमने इस मनहूस की बातें सुन ली, कमाल की बात है आज यहाँ पर कोई नहीं है, लेकिन यह ख़ाली बाज़ार हमारी मुलाकात का चश्मदीद गवाह है, अच्छा अब तुम जाओ बहुत हो गई बातें , लेकिन एक बात सुनते हुए जाओ कि,
मोहब्बत कहीं न कहीं ज़िंदा ज़रूर है
और यह दिलफ़िगार भी फ़िदा ज़रूर है,
जाने वाले चले जाते हैं मुस्कुराते हुए
इसलिए ज़िंदगी में कोई विदा ज़रूर है।।
©rangkarmi_anuj -
रेत की फिसलन
रेत की फिसलन
की तरह फिसलपट्टी
नहीं बनती है,
यह ज़िंदगी खुरदरी है
यह आसानी से मुलायम
नहीं बनती है।
पानी जब पड़ता है
मज़बूती जकड़ लेती है,
सांसों की आज़ादी के
लिए हवा बहकने लगती है।
कुछ ना सही ज़िंदगी
को आराम दे सकते हो,
इसलिए हर मंज़िल भी
रुकावट सी लगती है।
चार दिन चार रातें
यह भी बीत जाएंगे
रेत घड़ी की तरह
नीचे खिसकते चले जाएंगे,
फिर एक दिन हम सब
सुबह के आने के बाद
रात की तरह
गायब हो जाएंगे।
©rangkarmi_anuj
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hindinama 1h
@deepajoshidhawan जी की रचनाएं पढ़ें!
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अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !बढ़ती उम्र में तजुर्बों की दौलत यूँ ही न गंवाइए,
दिल को सोने का कीजे चाँदी बालों में सजाइये!
~ deepajoshidhawan -
©pritikhatri
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तेरी सादगी पर यूँ चार चाँद लगा देंगे
तुम पहनना साडी़ हम तेरी मांँग में सिंदूर सजा देंगे
//Unknown // -
Women's Day
अबे गधों...आज "international women's day" है या यूँ कह लो कि आज अंग्रेजों का "नवरात्र" है आज "आदिशक्ति" की शान में कसीदे गढ़े जाएंगे ।
आज के दिन पूरी दुनिया में कहीं बलात्कार नही होगा, आज किसी लड़की का राह चलते अपहरण नही होगा , आज किसी के चेहरे पे तेजाब नही फेंकना है , आज किसी लड़की के सिर में गोली नही मारनी है , आज शराब पीकर घर आकर पत्नी को बेटी को मारना पीटना नही जानता हूँ तकलीफ होगी पर एक दिन की ही बात है आकर सो जाना चुपचाप , कल से तो फिर तुम्हारा दिन है । आज मेरी माँ को खाना नही बनाना पड़ेगा सारा दिन हाड़ तोड़ मेहनत नही करनी पड़ेगी । आज दहेज़ के लिए बीबी को बहु को नही मारना है या जलाना है । आज पत्नी के साथ गुलामों जैसा नही देवियों जैसा व्यवहार करना है, आज अपने नीचे काम करने वाली महिला सदस्या को प्रमोशन के लिए साथ सोने को विवश मत करना ,आज बसों में ट्रेनों में लड़कियों के महिलाओं के नाज़ुक अंगों को छूने की कोशिश मत करना ,आज स्कूल,कॉलेज,रास्ते ,चौराहे पे खड़े होकर फब्तियां मत कसना । एक दिन की ही तो बात है कल से फिर अपने अरमान पूरे करने में लग जाना ।
अबे गधों आज नही आज "international women's day" है...आज नही यार .
©my_sky_is_falling -
amateur_skm 2h
यहां से पढ़े
¶सफ़र
मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था।लेकिन मैं ट्रेन की कोच में अपने ऊपर वाले berth पर लेटा हुआ था।तभी अचानक से किसी के सुबक सुबक करके रोने की आवाज आई तो नीचे झांक कर देखा तो एक लड़की रो रही थी। लगभग मेरे ही उम्र की रही होगी।एक बार को मैने ignore किया लेकिन वो सुबकना अब रोने में बदल गई थी। मैंने आस पास देखा तो मेरे कोच में कोई नही था सिर्फ मैं और वो लड़की। मैं नीचे उतरा तो उस लड़की के पास गया। उससे पूछा "क्या हुआ और क्यूं इतनी देर से रो रही हो"
वो गुस्से से बोली "कुछ नही बस उसने मुझे धोखा दे दिया है और अपने काम से काम रखो "(मैने एक शराब की बोतल देखी उसके पास)। मैने बोला "देखो जिस situation से तुम गुजर रही वो मैंने देख चुका है तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं?" (मेरी बात सुनकर वो थोड़ा चौंकी)उसके बाद हम दोनो आपस में बात करने लगे मैंने अपनी कहानी सुनाने लगा जिससे उसका मूड कुछ light हुआ।फिर उसने बताया की उसकी नानी का घर गोरखपुर में है और उसका घर लखनऊ में चारबाग के पास है।उसके बाद हमने selfie ली।उसने कुछ देर बाद अपना नंबर दिया तो मैने save कर लिया "NEHA" के नाम से।उसकी तबियत ठीक भी नही थी तो मैं उसे उसके घर तक छोड़ कर फिर अपने दोस्त के घर चला आया।दो दिन बीत गए थे और मुझे गोरखपुर जाना था तो सोचा की क्यूं ना उससे मिल कर चला जाए।लेकिन उसका नंबर out of service बता रहा था।मैने उसका घर भी देखा हुआ था तो सोचा की एक बात मिल कर ही चला जाए और उसकी तबियत भी पूछ लूंगा।जैसे उसके घर पर पहुंचा तो जैसे उसके घर के दरवाजे पर पहुंचा तो नौकर से बोला "नेहा जी को बुलाएगा, उनका दोस्त सौरभ आया है"
नौकर ने मुझे घूर कर देखा और जैसे मैं सोफे पर बैठ रहा हूं तो दीवार पर लगे एक फोटो पर नजर गई उसपर लिखा था "LATE NEHA SINGH 1997-2020" मेरे दिमाग में हजार सवाल उठ रहे थे।
तभी पीछे से एक आवाज आई अचानक से तो मैं डर गया था "आप कौन है ??और मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं"
मैं तो उस lady(नेहा की मम्मी) को दो दिन पहले की बात बताना चाहता था लेकिन मैंने बस उससे पूछा " मैं नेहा का दोस्त हूं उसके कॉलेज से हूं" तो उन्होंने बताया की नेहा ने सुसाइड कर लिया था जब वो गोरखपुर से लखनऊ आ रही थी तो उसने ट्रेन में ही सुसाइड कर लिया था। और फिर बताया की आज ही उसकी death anniversary है।मुझे पसीना बहुत तेज हो रहा था जबकि ये दिसंबर का कड़कड़कती ठंड का महीन था।मुझे एक बार को लगा ये कोई मजाक है।फिर मैंने मोबाइल की gallery खोल कर देखी तो उस selfie में कुछ और ही था और ये कोई मजाक नहीं था।
P.S. :- Fiction? Or reality?
बताएगा कैसी लगी ये post।
(पहला attempt है ऐसे लिखने का )
©सौरभ -
"नारी "
नारी ईश्वर का सबसे सुन्दर शास्र है!
अनेक रूपों मे नज़र आती नारी!
निर्मल मन भावो की भाषा हरती अविवेक!
हरसिंगार सी कोमल चट्टान की तरह अडिग नारी!
प्रेम स्नेह वात्सल्य की मूरत है नारी!
मंगल सुविचार ईश्वर की पवित्र पुकार नारी!
धरा रूप नारी जग सृजन करती !
जीवन से भरी वृक्ष समान !
पिया की अनुगामी बन साथ निभाती सदा!
हर युग मे दे बलिदान किया सबका उत्थान!
जीवन को सुरभित कर घर आंगन महकाती!
दुर्गा ,काली,मीरा,राधा सीता सुख धाम!
मर्यादा का गहना सजती नारी देह!
पिया संग कामिनी मातुल सुत के साथ!
जिसने नारी को समाजा उसने उपनिषद को जाना!
©ruchitashukla -
Why only men should respect a women
A women should also respect another women❤️
It's not about gender
It's about human..
Wish you a very happy women's. Day to all the women in the world.
You gave us life.
You are our first teacher
You loves us unconditionally
You supported us
You taught us to be soft
You made our life beautiful
You gave us that priority so that men are superior
You put us forward from you
You lost your identity to brighten our surname
You sacrificed a lot for us.
THANK YOU VERY MUCH. -
bagdi_kanya 11h
ये शब्द गांव और शहरों में उन लड़कियों की आवाज है, जिन्हे समाज की कुरीतियों या छोटी सोच के चलते आगे नहीं बढ़ने दिया जाता
#internationalwomensday #stree #womensday #8march2021 #hindiwriters #hindi #quotes #mirakee #mirakeehindi #mirakeewriters #writerscommunity #hindikibindi #bagdikanya #morning #8march2021 #aurat #twoliners #life #hindisahitya #morning #midnightthoughts #thoughts #change #bagdikanya #hindilekhan #shayari #urduhindishayari #womensday2021
@hindiwriters @hindikibindi @hindinama @hindikavi @hindilekhanInternational women's day
बंद हूं, पाबंद नहीं बेशक..
समाज की बेड़ियों से जकड़ी हूं पर रजामंद नहीं।
©bagdi_kanya -
priynka 13h
किसी फूल की
पंखुड़ियों सी बिखरी पड़ी है जिंदगी..
अस्तित्व खो चुका हूं अपना,
फिर भी मंजर खूबसूरत है..
©priynka❤️ -
manuhere 13h
From someone who could guide you, shape you to someone whom you want to share your tomorrow, the wings and the nest, all in a woman
A HAPPY Women's Day, to all the amazing ladies, whether you know me Or not, if you end up reading this, you're all the good things you can be
#womensday #poetry #tribute #अनवरत #hindi #writerscommunity # mirakeeworld #mirakee #muse
@shriradhey_apt @writerstolli @hindiwriters @rangkarmi_anuj @riyashiअपूर्ण
अश्रु को अमृत कर दो
मरु में जीवन भर दो
लिखदो भले तुम मेरा कल
मुझमें काँटो के बोए फल
श्रवण की अनुपम मिसाल
जीवन,पय, भरता आँचल विशाल
क्या क्षमा, क्या गर्जना , और
क्या स्पर्श हरता चिंतन सबल
मुझमें शेष है कुछ भी अगर
तो है बस साथ तुम्हारे कल
तुम प्रेम का स्वरूप सरस
वर्षा मद में जैसे बेबस
मनु मिश्रा
