हर सवाल का जवाब कौन दे
हर अज़ाब का हिसाब कौन दे
बह गये हैं चंद ख़्वाब चश्म से
अब इन आँखो को सराब कौन दे
©succhiii
succhiii
बिखरे बिखरे से अल्फ़ाज़
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succhiii 1w
@mirakeeworld
ख़ुदाओं की निहायत बस्तियों में इन
कोई इंसान दिखना भी ज़रूरी था
मीटर 1222 1222 1222
गुले-रूखसार -फूलो का चेहरा
फ़साना - कल्पित कहानी
मकतूब -ख़त
मिन्हा -घटना , कमतर
शादाब- हरा भरा
सराब -मृगतृषाग़ज़ल
गुले- रूखसार खिलना भी ज़रूरी था ।।
कड़ी थी धूप जलना भी ज़रूरी था ।।
किनारों पे फ़क़त चलते भी तो कब तक ..
समुन्दर में उतरना भी ज़रूरी था ।।
फ़सानो के सराबों में रहें उलझे ..
कोई मकतूब लिखना भी ज़रूरी था ।।
तुझे यूँ याद करके थक गया है दिल..
कभी तो तेरा मिलना भी ज़रूरी था ।।
ख़ुदाओं की निहायत बस्तियों में इन...
कोई इंसान दिखना भी ज़रूरी था ।।
ग़मों का बोझ कुछ मिन्हा हो जाता,इक ...
ग़ज़ल शादाब कहना भी ज़रूरी था ।।
@succhiii -
succhiii 8w
@mirakeeworld
कभी-कभी लफ़्ज़ भी जता नहीं पाते .....जो अहसास जता जाते हैं
मीटर 212 212 212 212
दस्तरस- पहुँचयूँ न लफ़्ज़ों के जादू से बाँधो मुझे
दिल की गहराइयों से पुकारों मुझे
तेरे ही दस्तरस में ये दिल है मेरा
आज़मा के किसी दिन तो देखो मुझे
@succhiii -
succhiii 10w
@mirakeeworld
दिल-फिगारो — चिंताग्रस्त , पीड़ा , शोक ज़ख़्म
एक सूफियाना कलाम पेश है आप सब की ख़िदमत में ..गौर फ़रमाइएगा ..और अपनी मोहब्बतों से नवाज़िएगा 💕🙏🏻
मीटर 1222 1222 1222ग़ज़ल
तू है मेरे ख़यालों के दयारों में
बसी ख़ुशबू तेरी हर सू नज़ारों में
नहीं होगा कोई भी मेहरबाँ उन सा
नहीं दिखती वो सूरत भी हज़ारों में
गिला कोई नहीं है मौसमों से पर
नहीं लगता है अब दिल इन बहारों में
कहीं टूटे न पुल ये ज़ब्त के यारों
गुहर ठहरे हैं पलकों के किनारों में
खिला है चाँद उसकी यादों का वरना
खो जाती ज़िंदगी इन, दिल-फिगारो में
कभी भूला नहीं जो, याद क्या करना
बसा जो रूह के चौकस हिसारों में
रवाँ हर शय में तू ही है मेरे मौला
तुझे ढूँढू किधर मैं, किन सहारों में
है ख़ुद के रौशनी से “सूचि” तू रौशन
ऐ दुनिया ! क्या रखा , तेरे शरारों में
@succhii -
गुज़र कुछ गया , कुछ गुज़ारा है हमने
रखा याद कुछ , कुछ बिसारा है हमने
पुराना है नाता यूँ तो ग़म से अपना
सो इस तरह ख़ुद को सँवारा है हमने
@succhiii -
रोक ना पाया कोई , दरिया रवानी को तो तेरी
यूँ तो आए राह में तेरे , किनारे कैसे-कैसे
सम्त से तेरे दुआ जब आती है मेरे या रब्बा
दीप बन जलते हैं, क़िस्मत के सितारे कैसे -कैसे
©succhiii -
succhiii 14w
मजनून -allusion संकेत इशारा
पशेमाँ - लज्जित
बरहम -नाराज़गी
रूखसार- चेहरा
मीटर - 2122 2122. 2122. 22
रमल मुसम्मन मक्तुअ
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ैलुनग़ज़ल
बहते दरिया की रवानी को चुराते कैसे
कितना प्यासा है समुन्दर ये बताते कैसे
तुझसे बरहम ना शिकायत कोई दुनिया से है
रूठ ख़ुद से ही गये हम ,यूँ जताते कैसे
तेरे वो मजनून-ए-ख़त ज्यूँ आसमाँ के तारे
हर्फ़ों में लिपटी तेरी ख़ुशबू मिटाते कैसे
तू बदल जायेगा हमदम ये नहीं सोचा था
हम हुये यूँ भी पशेमाँ ,ये बताते कैसे
पहली बारिश की फुहारों सी मुहब्बत तेरी
सौंधी ख़ुशबू जैसे मिट्टी की, भुलाते कैसे
देखकर उनको हँसे रूखसार के शबनम भी
ज़हनी परतों की उदासी, हम दिखाते कैसे
शाम ना ही ये सहर अपनी न मंज़िल अपनी
“सूचि” हम हैं किस गुज़र के ये बताते कैसे
@suchhiii -
ग़ज़ल
वस्ल ये तेरा, क्यूँ ख़्वाब सा रह गया
हिज्र का जैसे अब सिलसिला रह गया
बारहा ज़ख्म सहते तग़ाफ़ुल के हम
कहते -कहते ये दिल कुछ, बुझा रह गया
सुब्ह का तारा आता नहीं क्यूँ नज़र
शब की पेशानी पे वसवसा रह गया
ज़ब्त आँखों ने की थी बहुत यूँ मगर
लब हँसें ,दिल में कुछ सालता रह गया
तेरा कंधा अगर मिलता रो लेते, पर
तेरी आँखों में भी कुछ छुपा रह गया
चाहा था रोकूँ जाती बहारों को पर
यूँ हवायें चली बस खला रह गया
याँ तवज्जो वफ़ाओं को जिसने भी दी
“सूचि “ वो बारहा टूटता रह गया
@succhiii
मीटर ..212 212 212 212 -
नई चेतना
हे नारी तू गढ़ अपनी नूतन परिभाषा ।
रख ना व्यर्थ जगत से तू मिथ्या अभिलाषा ।।
बना आसमाँ एक नया अपना नूरानी ।
ख़ुद से लिख दे तू अपनी अस्तित्व कहानी ।।
नहीं आएगा कोई पग के काँटे चुनने ।
कोमल ख़्वाब तेरी इन आँखो के बुनने ।।
चुप क्यूँ खड़ी अथाह अगाध समुन्द्र किनारे ।
तेरी आँचल में ही छुपे ये चाँद सितारे ।।
राहें दिखलाए तुझको जुगनु की टोली ।
आँचल को परचम करके तू जब-जब बोली ।।
नारी शक्ति है प्रेम अर्ध्य ममता की अंजलि ।
सदा वासना की वेदी पर क्यों होती बलि ।।
माँग नहीं भीख, हक़ छीन ले अपना ।
अनपूर्णा हे ! तू तनिक भी देर न करना ।।
है तुझपर साया सात आसमानो सा ।
हाथ उठा, एक बार दम्भ हर बलवानो का ।।
तुझमें है चंडी,सरस्वती दुर्गा की दीप्ति ।
पहचान , तुझमें ही छुपी ब्रह्मांड की शक्ति ।।
@succhii -
succhiii 22w
आप सब को यह बताते हुए अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है , कि wingword poetry’ प्रतियोगिता ने मेरी चयनित रचना को अपने नए संस्करण “राग पलाश “ पुस्तक में स्थान दिया है 😊 मित्रों , आप सब के साथ और प्रोत्साहन से ही यह सब कुछ संभव हो पाया , अपनी इस ख़ुशी में आप सब को शामिल कर , आप सब का धन्यवाद करना चाहती हूँ 🙏🏻💕😊
@mirakeeworld..
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rekhta_ 2h
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jazz_baaatt 2h
जीवद्रव्य
तुम दिखते नहीं
समाए रहते हो मुझमें
रजकण हवा में बिखरें हों जैसे
रोशनी कहीं से पड़ती है
तुम ज़ाहिर होते हो
दिखने लगते हो बिखरे हुए
सोचा जा सकता है
कोई काम न होगा इन कणों का हवा में
लेकिन जीवद्रव्य हैं ये
कई जानें जीवित हैं इनमें!!!
©jazz_baaatt -
न जाने कैसा है इश्क तुमसे
हमी से हम हो गये पराये
कोई तो पूछे ये हाल मेरा
के खुद से कैसे खुदी लड़े हैं
©saroj_gupta -
कविता
*शिशिर*
मर्मर स्वर कर द्रुम शाखा से,
बलिदान प्राण कर अकस्मात l
नव किसलय को जीवन देने,
झर रहे जरठतम शीर्ण पात l
नव पर्ण वृन्द के स्वागत मे,
उत्कर्ष किये निज प्राण गात l
बिछ गए भूमि तल प्राणहीन,
तरु शाखाओं से हो विजात l
नव विविध पुहुप कुसमित होंगे,
कानन में सुरभित मृदुल वात l
न्योछावर प्राण सुभग आशा,
उज्ज्वल हों आगत दिवस रात l
नभ मंडल क्षितिज अवनि तल सब,
कर रहे धूम्र घन आत्मसात l
धूसर वातायन से छन-छन,
रवि स्वर्ण किरण का द्युति प्रपात l
निशि अंक रही स्लथ अचला,
चेतन कर जाता नव प्रभात l
स्फूर्ति, हृदय नव स्पंदन,
दे प्राण शिशिर का नवल प्रात l
©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'
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गीत
*प्रियतम*
तुम निकट हो,दृष्टि मेँ हो,मौन किंचित,
प्राण संप्रेषित करें संदेश प्रियतम l
ज्ञान हो आसक्ति मन की चेतना हो,
तुम तृषित चातक हृदय की याचना हो l
तुम अमिट पहचान हो अस्तित्व मेरा,
नेह हो अनवरत मोहक कामना हो l
श्वास, मानस, देह कण-कण मेँ समाहित,
हो सदा गतिमान शोणित बन शिरा मेँ,
मधुर स्पंदन हृदय की अनवरत गति,
भावना, अभिव्यक्ति की विह्वल गिरा मेँ l
शून्य हूँ निस्तेज हूँ निष्प्राण हूँ मैं,
तुम अनश्वर हो अमर प्राणेश प्रियतम ll
एक क्षण यदि दृष्टि प्रिय की दूर जाती,
क्षीण मरुत प्रहार कृश लौ सह न पाती l
श्याम तिमिर वितान का विस्तार नभ मेँ,
तेज प्रभा विहीन हों मन दीप बाती l
ज्योत मलिन प्रकाश धूमिल हो रहा है,
फिर नए उत्साह का संचार कर दे l
फूँक फिर से प्राण बुझती रुग्ण लौ मेँ,
नेह से जगमग हृदय संसार कर दे l
तू विमुख हो यदि निमिष तो शून्य हूँ मैं,
बिन तेरे निर्वात सम परिवेश प्रियतम ll
है हृदय की वेदना का भान तुझको,
विकट अंतरद्वन्द का अनुमान तुझको l
ज़ब चिरंतन प्राण का अनुबंध है फिर,
क्यों दिलाऊँ मैं व्यथा का ध्यान तुझको l
यह तेरी मन रंजनी क्रीड़ा निराली,
ये विमुख उपक्रम अपरिचित स्वर तुम्हारे l
व्यग्र करता चित अपरिचित रूप तेरा,
बन रहा अस्तित्व पर संकट हमारे l
अंक मेँ भर,भूल कर त्रुटियाँ क्षमा कर ,
व्यर्थ व्याकुल प्रियतमा से क्लेश प्रियतम ll
©संजीव शुक्ला 'रिक्त' -
playboy9 5h
महफिल भी नवाब तनहाईयों का एहसास दिलाती है
खून के आँसू रोता है दिल जब याद तुम्हारी आती है
©playboy9 -
rekhta_ 1d
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rekhta_ 1d
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लम्हें थोड़े हैं इन्हें काम में लिया करो
सारा मयख़ाना एक जाम में लिया करो,
देखना ये फिर और भी लगेगा खूबसूरत
तुम अपना नाम मेरे नाम में लिया करो,
यार दिन भर मुझे काम बहुत रहता है
तुम मेरा हाल-ख़्याल शाम में लिया करो,
ये लोग फिर तुम्हें और भी शौक़ से सुनेंगे
तुम अपने दर्द को क़लाम में लिया करो,
उसके होकर तुम कहीं के भी नही रहे ना
मैंने कहा था फैसले आराम में लिया करो,
इश्क़ तुम्हें बहुत सस्ता पड़ जायेगा 'राग'
इस इश्क़ को तुम नीलाम में लिया करो।
©sonugangwar(Raag) -
याद रहे..
हमारी शून्यता के समय रहे मित्र हमारी पूँजी हैं..
और पूँजी के साथ बने हुए मित्र हमारी शून्यता..
©deepajoshidhawan
