अफ़सोस नहीं कोई ग़म नहीं
अधूरें ख़्वाब जो पीछे छोड़ गई
अनजाने में दिल के रास्ते
ख़ुद के सपने सजाना भूल गई
मैं नारी,अपने ही दर्पण में
ख़ुद की पहचान भूल गई
एक ऐसे बँधन में बँधी
बाकी सारे बँधन खोल गई
प्यार के कितने मोती पिरोएं
अपनी ही माला बनाना भूल गई
मैं नारी,अपने ही दर्पण में
ख़ुद की पहचान भूल गई
वह मेरा दर्पण था मुझको प्यारा
मुस्कुराती थी जब भी प्रतिबिम्ब निहारा
अक्स आज मैंने अपना न पहचाना
ख़ुद को संवारना भूल गई
मैं नारी,अपने ही दर्पण में
ख़ुद की पहचान भूल गई
©vasudhagoyal
vasudhagoyal
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जब विरान रातें ढूंढती फिरती हैं नींद को
हम तेरी यादों में खो जाया करते हैं
ख़ामोशी खटखटाती है तन्हाइयों का दरवाज़ा
अपनी ग़ज़लों में तुमको गुनगुना लिया करते हैं
मचलने लगती हैं जब कुछ ख्वाहिशें है
हम तुम्हें याद कर मुस्कुरा लिया करते हैं
धुंधला हो जाता हैं हक़ीक़त का हर रंग
आँखों में तेरी तस्वीर बसा लिया करते हैं
हावी हो जाती हैं ख़लिश कुछ इस कद़र
तेरी यादों में हम कुछ अश्क़ बहा लिया करते हैं
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बड़ी मुद्दतों बाद आई है वस्ल की रात
अपने हाथों से सजा दूं तुझे आज की रात
यादों में कर लेंगे बंद हर लम्हें को
मुख़्तसर न रह जाएं उल्फ़त की रात
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vasudhagoyal 2w
छुपायें रखीं दिल की कशमकश जो कहनी थी
निकल गए सफ़र पर कहीं दूर इत्तेफ़ाक की बात
फ़ासला हुआं तनहाइयां बहुत लम्बी रहनी थी
आँखों में सैलाब लिए आई हिज़्र की रात
भटकते रहे यूँ ही राहों में जुदाई सहनी थी
कहीं रुक़ गए बेबस वक़्त से खाई मात
©vasudhagoyal -
कभी देखिएं भी कुछ समझिएं भी
व्याकुलता इस चित्त की परखिएं भी
अपने मन को शून्य से मत भरने दो
ज़ेहन में रिक्तता मत पनपने दो
तर्क वितर्क सब धरा रह जायेगा
स्वार्थ जब सिर पर मंडरायेगा
स्वाभिमान की ज्वाला में स्वार्थ को जलने दो
ज़ेहन में रिक्तता मत पनपने दो
सुन लो आत्मीय पुकार को
हृदय में मचलते उफ़ान को
निश्चल इस हिलोर को रक्त में प्रवाहित होने दो
ज़ेहन में रिक्तता मन पनपने दो
निष्कपट नेह बरसने दो
ओज बूँद को अनवरत छलकने दो
इस जीवन को अनंत प्रश्नों से मत भरने दो
ज़ेहन में रिक्तता मत पनपने दो
©vasudhagoyal -
समझते रहे जिन्हें अपना
वह रिश्ते बड़े ज़हरीले थे
ख़ुद को सँभालने की कोशिश में
बार बार गिरे तुम्हारे साथ जीने के
रास्ते बड़े पथरीले थे
जिस बगिया में फ़ूल लगाया
सींचते रहे उसे ख़ून पसीने से
तब भी उगे झाड़ कंटीले थे
होंठ खुले जब भी व्यथा कहने को
जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया
काँटे चुभें नुकीले थे
अपना सकें ना किसी और को
न ही ख़ुद के हुएं
यह संबंध बड़े नशीले थे
समझते रहे जिसे हम अपना
वह रिश्तें बड़े ज़हरीले थे ।।
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समाज की कुरीतियों की कुलबुलाहट
कभी मन में उठे तूफानों की सुगबुगाहट
नहीं भाई मुझे इस ज़माने की राह
अपनी शर्तों पर जीने की चाह
धीरे-धीरे कुछ शब्द गणने लगे
कुछ भाव दिल में मचलने लगे
एक दिन लिख डाले सब जज़्बात
उस दिन हुई ख़ुद से मुलाकात
बह रही थी विचारों की नदी
लगा लिखना ही है सबसे सही
कागज कलम का थाम लिया मैंने दामन
खिल उठा था मन का सारा चमन
©vasudhagoyal -
vasudhagoyal 4w
तारों की छाँव में एक शाम
विचारों से भरा एक जाम
सुकून है लम्हा नहीं ये आम
महसूस करों वक़्त लो थाम
©vasudhagoyal -
अपने हौसलों को आज़माना हैं
मुश्किलों में भी मुस्काना हैं
नन्हे नन्हे कदम बढ़ा कर
आगे ही बढ़ते जाना हैं
प्रगति के पथ पर हो अग्रसर
हरदम कुछ नया करते जाना हैं
राहों के काँटे चुन चुन कर
ख़ुद ही गुलशन नया बसाना हैं
दृढ़ निश्चय करने वालों को
पथ के मोड़ नहीं भटकाते हैं
संकल्पों से लक्ष्य स्वयं ही
पास खींचे चले आते हैं
कुछ भी नहीं असंभव
सुख-दु:ख तो आना-जाना हैं
भरोसा कर लिया जब खुद़ पर
निरंतर चलते जाना हैं।
©vasudhagoyal -
vasudhagoyal 6w
सुलगी सुलगी साँसें हैं
धधकता है यह मन
अन्याय की आग में
झुलस रहा है यह तन
ख़्वाहिशों के अवशेष हैं
दफ़्न होना शेष हैं
वज़ूद हुआ धुआँ धुआँ
टीस तृषा रिक्तता का समावेश हैं
करती रही हजार मिन्नत
होती रही मेरी तिज़ारत
द़स्तूर जहां का हमें न भाया
लिख दो अब नई इबारत
वसुधा गोयल©vasudhagoyal
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अहबाब !
रात भर जलाया खुदको तब जाकर जान-ए-सुखन बना हमसे,
क्या शाइर को कह'ती मिरे हबीब, कि महज कफ़न बना हमसे।
दश्त-ए-फरामोशी में कौन रखता है लफ्ज़ समंदर की बातों के,
अरसों बाद इलाही, रस्म-ओ-रह-ए-अहल-ए-चमन बना हमसे।
काफिरों को मिली है का'सा-ए-जऱ में शराब गली गली जाकर,
कम्बख्त एक हम ही थे वहां, महज ख़ा'क-ए-बदन बना हमसे।
उन निगारों को छूकर भी खामोशियाँ उठा लाये वजीर सीने में,
ना कोई तूफाँ आया जिहन में,ना दिल-दारी-ए-फ़न बना हमसे।
सू-ए-फ़लक की ओर जा निकला था राह'गीर चन्द कदमों का,
आखिर यही फ़र्द-ए-अमल देख'कर बे-साख्ता-पन बना हमसे।
सैंकड़ों इल्ज़ाम थे मुझपे,चले आये थे दाग़-ए-मयस्सर के संग,
काफ़ी मशक्कतों के ब'अद तिरे शहर में इक़ सदन बना हमसे।
©jiya_khan -
ajnabi_abhishek 10h
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हमने था सेनापति समझा थे छोटे से प्यादे तुम।
थोड़े से कुछ ज्यादा थे पर आधे से थे आधे तुम।
बस चुनाव के मौसम भर में तुमने मेरा साथ दिया।
अब लगता है नेताओं के थे कोरे से वादे तुम।।
©ajnabi_abhishek -
©i_am_an_unprofessional_writer
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जिस बेटे को उठाने में,
माँ को पूरा दो घण्टा लगता हैं..
वो अपने gf को कहता है,
बेबी तेरे ख्वाब मुझे सोने नहीं देते।। -
positively 1d
Please guy watch my new video
Link mere bio mei hai
If u like then please share.
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बारीशें
बारिश की कुछ बूंदे क्या पड़ी मुझपे,वो तेरे होने का एहसास दिला गई,,
ठंडी पड़ी तेरी यादों की राख को, फिर से दहकते हुए अंगारे बना गई,,
सोचता था, कि दफन कर चुका हूं मैं, तुम्हें कबका,,
पर तू ज़िंदा है अब भी मेरे अंदर, ये बारिश आज मुझे महसूस करा गई।।
©_vipsi_ -
जज्बात
अपने लफ़ज़ों में, अपनी ही कैफियत को कैसे बयां करूं,,
ए - जिन्दगी,जो तूने सिखाया उसका शुक्रिया कैसे करूं,,
टके - टके के भाव बिकते है,इस दुनियां में जज्बात,
तो अब मैं किसी ओर के जज्बातों पे भरोसा कैसे करूं,,
©_vipsi_ -
words_treaty 22h
Collab with @jiya_khan ❤️❤️❤️
After a long time
@ajit___
@gunjit_jain
@DADDIESPRINCESS
@COSINES
@RANI_SHRI
@VASUDHAGOYAL
@EUNOIA__
@AARTI_SINGH
@PRIYASANDLIYAमहफ़िल की तौहीन थी, या वो तोहमतों से डर गया,
एक बेजुबान शायर,जब टूटे अल्फाज़ लेकर घर गया!
©words_treaty -
शाम की तन्हाई में
उन हसीन लम्हों की अंगड़ाई में
तुम्हे याद करते हैं हम
हर वक्त अपनी रूबाई में
दिल की गहराई में
तुम्हारी परछाई में
खुद को ढूंढते हैं हम
तुम्हारी हंसी की शहनाई में
दरिया के किनारे
तुम्हारे कांधे के सहारे
कोई ख्वाब देखते थे हम
बंद अंखियन में हमारे
दुनिया में हमारे
रंग भरे हैं तुम्हारे
उन रंगों में तलाशते हैं हम
वो बीते किस्से हमारे
©saloniiiii -
deepajoshidhawan 2d
कुछ धोखे इतने खूबसूरत होते हैं कि उन्हें
खाने के बाद भी दिल से निकालने को
मन नहीं मानता....
#hindiwriters @hindiwritersतस्वीर में तुम्हारी हमें रहनुमा दिखा था,,
तक़दीर में हमारी दिल टूटना लिखा था..
©deepajoshidhawan
